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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १५३ देखे जाते गाथाओं के अतिसाम्य के कारण दोनों के कर्ता एक हो यह असंभव नहीं । यद्यपि कल्पभाष्य की गाथा ३२८९ में आते 'सिद्धसेणो' पद को देखकर उन्होनें कल्पभाष्य के कर्ता 'सिद्धसेन' हो ऐसी कल्पना की है, परन्तु वहा भी 'सिद्धसेन', 'संघदास' का दूसरा नाम हो ऐसी कल्पना भी लिख दी है | ___एक और बात यह है कि वे व्यवहारभाष्य के कर्ता को महाभाष्यकार के पूर्ववर्ती मानते हैं, और वे 'अज्ञात' होने का भी कहते हैं । लेकिन बाद में वे तीनों भाष्य के कर्ता एक ही है ऐसा जब तर्क करते हैं तब व्यवहारभाष्य के कर्ता अज्ञात भी नहि रह पाते, और कल्पभाष्य के कर्ता का पूर्ववतित्व भी स्वयं सिद्ध होता है। समग्रता से उनके उक्त विचारों का आकलन करें तो उनके प्रतिपादन में दो विभाग स्पष्ट प्रतीत होंगे । पहले विभाग में कल्पभाष्य का महाभाष्य से पूर्ववतित्व सन्दिग्ध है और व्यवहारभाष्य के कर्ता अज्ञात हैं। दूसरे विभाग में कल्पभाष्य का पूर्ववर्तित्व स्पष्ट हो गया है और कल्प एवं व्यवहार - दोनों के भाष्यों के कर्ता एक होने का भी स्वीकार हो चुका है। उनके इन दोनों विचारों के बीच काफी समय का फासला है ही। इनके ये सब विचार 'ज्ञानांजलि'-संज्ञक उन्हीं के अभिवादन-ग्रन्थ में उपलब्ध हैं, वहाँ उनके दो विस्तृत आलेख अनेक दृष्टि से पठितव्य हैं, और उनकी बहुश्रुत प्रज्ञा के परिचायक भी। __ श्रीमोहनलाल महेता अपने ग्रन्थ 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - भाग - ३' में इस विषय पर कुछ उपयुक्त ऊहापोह करते हैं वह इस प्रकार है - ‘वादी, क्षमाश्रमण, दिवाकर, वाचक' ये सब शब्द एकार्थक हैं, एक ही पदवी के लिए प्रयुक्त होते हैं, अत: कहीं पर 'वाचक' शब्द हो और कहीं पर 'क्षमाश्रमण' शब्द प्रयुक्त हो, तो उससे उन व्यक्तिओं में भिन्नता की कल्पना अनावश्यक है । एक ही व्यक्ति के साथ पदवीसूचक विविध शब्द जुड़ सकते हैं। जैसे कि महाभाष्यकार को हम 'जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण' के नाम से जानते हैं, मगर 'अकोटा' से प्राप्त धातुप्रतिमा के उपर, जिनभद्रगणि का नामोल्लेख देखने मिलता है वहाँ 'क्षमाश्रमण' नहि, अपितु 'वाचनाचार्य' शब्द लिखा देखा जाता है। अब वे हैं तो वे ही जिनभद्रगणि - महाभाष्यकार । अतः पदवाचक शब्द के भेद से 'संघदास' नामक आचार्य दो हैं ऐसा मानना उचित नहि होगा।
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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