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अनुसन्धान-७५(१)
मुद्रणदोष, विगतदोष होय तेने बहु सहजताथी पकडी पाडे छे, अने अत्यन्त सलूकाईथी तेओ ते ते क्षतिओ तरफ ध्यान दोरी आपे छे. 'विहङ्गावलोकन'थी पत्रिकानी सामग्रीनुं मूल्य घणुं वधी जतुं होय छे, ए निःशङ्क छे.
छेल्ला याद करूं हरजीभाईने अने भाई किरीटने. हिन्दी-संस्कृत टाइपसेटिंग करवू ए आजे बोरिंग-कंटाळाजनक बन्युं छे. गुजरातमां आ बाबते भारे ऊणप के अछत छे. उपरान्त, गुजराती ने अंग्रेजी कामो ढगलाबंध मळतां होय छे. संस्कृत-हिन्दीना टाइप-सेटर के कम्पोजिटर मळतांय नथी, अने नवा कोई तैयार पण थतां नथी. आ स्थितिमां आ बन्ने पिता-पुत्रे 'अनुसन्धान'नुं काम खरा हृदयना सद्भावथी करवानुं चालु राख्युं छे ते, तेमना पर भायाणीसाहेबे मूकेला भरोसाने सार्थक ठरावनाएं छे, अने ते माटे तेमने साधुवाद घटे छे.
'अनुसन्धान'मां मुख्यत्वे प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती कृतिओ सम्पादित थईने छपाती होय छे. केटलाक शोधपरक लेखो तथा केटलीकवार ट्रंक नोंधो पण आवे छे. ७५ अङ्कोमा घणी बधी अप्रगट कृतिओ प्रकाशमां आवी छे.
प्रारम्भ थयो त्यारे एवो आशय हतो के संशोधन-प्रकाशनना क्षेत्रे अनेक विद्वानो, मुनिवरो, व्यक्तिओ, संस्थाओ वगेरे द्वारा चालतां शोध-सम्पादन-सर्जनकार्यो विषे माहितीना आदान-प्रदान माटे आ पत्रिका एक सबळ माध्यम बनी जशे. प्रारम्भना ३-४ अङ्कोमा तेवू थयुं पण खरं. परन्तु पछी आपमेळे ए प्रवृत्ति बंध पडती गई अने कोईने तेवो रस रह्यो नहि. एटले पछी अनायासे जे कोई प्रकाशनो जोवामां आवे तेने विषे परिचयात्मक नोंध अपाती रही, जे थोडा अङ्को सुधी चाली.
एक तबक्के सम्पादित प्रकाशनो विषे समीक्षा आपवानुं पण शरु कर्यु हतुं. तेमां ते ते प्रकाशन के सम्पादननी मूल्यवत्ता तथा उपादेयताने लक्ष्यमां राखवापूर्वक तेमां रहेली के थयेली क्षतिओ अंगे पण नोंध अपाती हती. गुजराती तेमज अन्य भाषाओना साहित्यिक प्रकाशनो विषे समीक्षा अने टिप्पणी करवानी एक तन्दुरस्त प्रथा आपणे त्यां व्यापक छे. जे ते प्रकाशननी गुणवत्तानी चर्चा करतां जईने तेमां तेना सर्जक के सम्पादकना हाथे थयेली क्षतिओ के नबळाईओ