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सप्टेम्बर - २०१८
प्रत्ये पण अङ्गुलिनिर्देश थाय. काईक आवी ज साहित्यिक ने शोधक दृष्टिथी आ समीक्षा चालती हती. आशय एटलो ज के सम्पादन करनारा विद्वान् मुनिजनोने दिशासूचन मळे अने सज्जता वधे. परन्तु आ बाबत लगभग कोईने ना गमी. 'तमे दोषदृष्टिथी ज बधुं जुओ ने लखो छो' एवो आक्षेप वहेतो थयो. सुष्ठ सुष्ठु अने प्रशंसात्मक ज सांभळवा टेवाई गयेलां कान समीक्षात्मक वातो सांभळीने अकळावा मांड्यां. एटले पछीथी वृथा अने अकारण द्वेष-दुर्भावनो भोग बनवानुं अने तेवा आक्षेप व्होरवानुं छोडी देवू वधु मुनासिब मान्यु. घणीवार, घणाये अनर्थरूप अने भविष्यमां खोटाने ज साचा मानवानी नोबतरूप प्रकाशनो जोवामां आवे छे. गलत संशोधनो पण ध्यानमां आवे छे, परन्तु हवे ते विषे कलम चलाववानुं मन नथी थतुं.
क्वचित् विवादरूप नोंधो पण लखवानी आवी छे. 'संशोधन विरुद्ध कट्टरता' (३६), 'समयनो तकाजो' (३५), 'आ विरोध नहि, वेदना छे' (६२) 'पत्रचर्चा' (६०, ६६), भगवान महावीरना गर्भापहारनी घटना विषे डॉ. जगदीशचन्द्र जैननी नोंध, जेने छापतां पं. दलसुख मालवणिया जेवा आधुनिक विचारना विद्वानो पण डरता ते अनुसन्धाने (४६) छापी छे; आ बधी नोंधो तेनां उदाहरण गणाय. परन्तु एक पत्रिकानी ए कडवी फरज होवानी प्रतीतिथी ज ते नोंधो थई छे. तेमां क्यांय द्वेषभावना के अंगत हिसाब वसूलवानी दानत नथी रही, एवं निःसन्देह कही शकुं. एक नोंध हेमचन्द्राचार्यना व्याकरणमां लेवामां आवेला दुहाओना कर्तृत्व विषे पण करी छे. ते दुहा चारण कविनी रचना छे, अने आचार्ये ते उठावेला छे, आचार्यना पोताना नथी - तेवी आक्षेपात्मक रजूआत अन्यत्र थई तेना तर्कबद्ध प्रतिवादरूप नोंध पण करवानी थयेली (२९). ट्रंकमां एक सामयिक पासे अपेक्षित मध्यस्थता तथा स्पष्ट वलण - आ बन्ने दाखववामां अनुसन्धाने क्यांय पाछी पानी नथी करी.
___ 'अनुसन्धान'नी स्वस्थ प्रणाली छे के तेनी भूल के खामी कोई दर्शावे अने ते समुचित होय तो ते स्वीकारे अने छापे पण. 'विहङ्गावलोकन' तेनो उत्तम दाखलो छे. उपरान्त, अन्य कोई पण जो भूल तरफ निर्देश करे तो तेनो स्वीकार होय छे. दा.त. अङ्क ३६मां आनन्दघनजी विषे एक टिप्पणी सम्पादके लखेली, पण ते ऐतिहासिक दृष्टिए भूलभरेली होवानुं ध्यान श्रीविनयसागरजीए दोरतां ३८मा अङ्कमां तेमणे आपेल क्षतिनिर्देशनी नोंध प्रगट करी हती. आवां विविध