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सप्टेम्बर - २०१८
'अनुसन्धान', ऐतिह्य, वीगते, ५०मा अङ्कमां आप्युं छे, एटले बधी विगतो, पुनरावर्तन नहि करूं. तो प्रथम-द्वितीय अङ्कोमां आ पत्रिकाना उद्देशो विषे पण निवेदन आपेलुं छे ज. आ क्षणे तो आ पत्रिकाना पायामां भायाणीजी छे, अने आना १७ अङ्को पर्यन्त आनुं सम्पादन-संचालन पण मुख्यत्वे तेमणे ज संभाळ्युं हतुं, एटलुं ज कहेवानुं प्राप्त छे. आ अनियत पत्रिकाने चालु राखी शकाई अने ७५मा अङ्क सुधी लावी शकाई ते जेम आनन्दनो विषय बने छे तेम, उपर उल्लेखेला बन्ने स्वनामधन्य गुरुजन तथा विद्वज्जनने अंजलिसमान पण बने छे.
'अनुसन्धान'नी आ यात्रामां भायाणीजी अने जयन्तभाई कोठारीनी शब्दचर्चा, आ पत्रिकाने वास्तवमां शोधपत्रिकानुं स्वरूप बक्षती रही. तेओ बन्नेनी विदाय पछी शब्दचर्चा बंध थतां एक जातनो खालीपो वर्तातो रह्यो छे. ए पछी पत्रिका महदंशे कृति-सम्पादनपरक रही छे. जो के विविध विद्वज्जनोना लेखो पण अवारनवार प्रगट थतां रह्या छे खरा. केटलोक समय जयपुरना श्रीविनयसागरजीए पत्रिकामां ऊंडो रस लीधो. तेओ जीव्या त्यां लगी रस लेतां रह्या. अमारा समुदायना ज आचार्य विजयसोमचन्द्रसूरिजीना बे शिष्यो मुनि सुयशचन्द्रविजयजी अने मुनि सुजसचन्द्रविजयजीए पण आ पत्रिकामा खूब रसपूर्वक सहयोग को छे. तेमनी तीक्ष्ण शोधक दृष्टिनी प्रशंसा ढांकीसाहेबे पण करेली. तेमनी उपस्थिति वगर अङ्क जरा अधूरो रही जाय छे एम अनुभवाय.
मारा साथी मुनिवरो धर्मकीर्तिविजय-कल्याणकीर्तिविजय वगेरेए पण आ पत्रिका-कार्यमां मने घणी सहाय करी छे. त्रैलोक्यमण्डनविजयजीनो आ पत्रिकाना क्षेत्रमा प्रवेश थयो त्यारथी तो मोटा भागनी जवाबदारी तेमणे ज संभाळवा मांडी छे. तो तेमनी सम्पादित कृतिओ, तत्त्वपरक लेखो तथा नोंधो पण सतत प्रगट थती रहे छे. आवतीकाल- सम्पादन सक्षम हाथमां हशे तेवू विचारतां घणी हळवाश अनुभवाय छे.
___एक खास नाम लेवू छे उपाध्याय भुवनचन्द्रजी,. पत्रिका साथे दिलोजानीथी तेओ जोडाया छे. “विहङ्गावलोकन'मां तेमनी शोधक-विवेचक-समीक्षक मुद्रा सतत जोवा मळे छे. तेमनी तीक्ष्ण दृष्टि कोई पण सम्पादनमां ज्यां क्यांय वाचनदोष,