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________________ १४६ अनुसन्धान- ७५ (१ ) नमः श्री श्रुतदेवतायै ॥ बृहत्कल्पचूर्णि - बृहत्कल्पबृहद्भाष्य के पीठिकाखण्ड की प्रस्तावना * आगम और छेदसूत्र भगवान् श्रीवीर वर्धमान जिनके धर्मशासन की मूल परम्परा के अनुसार पञ्चाङ्गी आगम प्रमाण माने जाते हैं । सूत्र, अर्थ, ग्रन्थ, निर्युक्ति, सङ्ग्रहणी ये पांच अङ्ग, अथवा सूत्र, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति ये पांच अङ्ग, इनसे युक्त आगम प्रमाणरूप में स्वीकारा जाता है । 'आगम' यानी मूल सूत्रग्रन्थ, उनमें से अमुक ग्रन्थ पर निर्युक्ति, भाष्य एवं चूर्णि की रचना हुई है। ये सभी मूल ग्रन्थ के तात्पर्य को विशद करनेवाले ग्रन्थ ही हैं । वर्तमान में उपलब्ध आगम की संख्या ४५ है । ११- अङ्गसूत्र, १२उपाङ्गसूत्र, १०-प्रकीर्णकसूत्र, ६- छेदसूत्र, ४- मूलसूत्र, २- नन्दीसूत्र व अनुयोगद्वारसूत्र ऐसे वे ४५ होते हैं । इन ४५ में से 'छेदसूत्र' ग्रन्थों का प्रधान विषय, जैन मुनिओं के आचारपालन का, एवं आचारपालन में क्षति हो तो उसके लिए क्या दण्ड या प्रायश्चित्त हो यह है। यद्यपि इन बातों के प्रतिपादन के साथ आनुषङ्गिक अनेक तात्त्विक, दार्शनिक एवं व्यावहारिक विषयों का निरूपण भी यहाँ होता रहता ही है, तथापि प्रधान विषय तो प्रायश्चित्त-विधान ही रहा है । इस विषय का प्रतिपादन करनेवाले मुख्य तीन ग्रन्थ हैं : कल्प, व्यवहार और निशीथ। इन तीनों का मूल स्वरूप सूत्रात्मक है । तीनों के उपर भाष्य एवं चूर्णि उपलब्ध है । निशीथ के अलावा दो छेदग्रन्थों के उपर वृत्ति की रचना भी हुई है। इन तीन में से निशीथसूत्र की चूर्णि एवं इतर दो सूत्रों की वृत्ति मुद्रित रूपं में उपलब्ध है, परंतु कल्पसूत्र व व्यवहारसूत्र की चूर्णि अद्यावधि मुद्रित नहीं हुई है। यद्यपि कुछ समय पूर्व कल्पसूत्र की विशेषचूर्णि मुद्रित हो गई है, परंतु चूर्णि का मुद्रण अभी बाकी है । * प्र. - श्रीहेमचन्द्राचार्य शिक्षणनिधि - अहमदाबाद, ई. २०१८ 24
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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