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अनुसन्धान- ७५ ( १ )
राजाओनी निष्फळता जोईने कर्ण आगळ आवे छे अने पणछ चडावी पांच बाण तैयार करे छे. पाण्डवोने प्रतीति थाय छे के आ लक्ष्यवेध करशे पण तरत ज द्रौपदी बोले छे - ए सूतपुत्रने हुं नहीं परणुं .
गीताप्रेसनी वाचना अटलुं तो कहे छे के कर्णे धनुष सज्ज कर्तुं, पण अ वात भाण्डारकर वाचनामां नथी.
बीजा शब्दमां समीक्षित वाचनामां द्रौपदीनी उक्ति नथी. गीताप्रेस तथा अन्य वाचनाओमां द्रौपदीनी उक्ति छे, अने पछी तो घणी बधी वाचनाओमां द्रौपदीवाळी उक्ति प्रवेशी गई. आनो अर्थ अ थयो के जातिगत सभानता जे समये वधवा मांडी थशे ते वखते द्रौपदीना मोढामां आ उक्ति प्रवेशी गई.
उमाशंकर जोशीओ ज्यारे 'कर्णकृष्ण' कृति रची त्यारे तेमनी सामे समीक्षित वाचना न हती, ओटले ज तेओ कर्णना मोढे कहेवडावे छे के स्वयम्वरोमां पौरुष जोवानुं होय, व्यक्तिनी जाति जोवानी न होय.
ओक बीजो प्रक्षेप द्रौपदी वस्त्रहरणना सन्दर्भे छे, मोटा भागनी भारतीय प्रजा माने छे के द्रौपदी वस्त्रहरण प्रसंगे श्रीकृष्णने द्रौपदी याद करे छे भेटले श्रीकृष्ण द्रौपदीने ९९९ चीर आपे छे. हवे महाभारतनी समीक्षित वाचना जोईओ. युधिष्ठिर जुगारमां भाईओने अने पोताने होडमां मूके छे अने बाजी हारी जाय छे, छेवटे द्रौपदीने होडमां मूके छे. बधा वृद्धो 'धिक्कार छे' बोले छे, पण धृतराष्ट्र आनन्द पामे छे, कर्ण आनन्द पामे छे. पछी द्रौपदीने केवी रीते सभामां लाववामां आवे छे से वातने बाजु पर राखीओ.
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दुःशासन अकवस्त्रा, रजस्वला द्रौपदीनुं वस्त्र खेंची रह्यो छे त्यारे कर्ण पोताना व्यक्तित्वने न छाजे ओवी रीते वस्त्रहरणनी घटनाने वाजबी ठरावे छे अने नरी अभद्र भाषामां बोले छे के पांच पतिवाळी द्रौपदी तो वारांगना कहेवाय, ओ ओकवस्त्रा होय, नग्न होय तो पण सभामां लावी शकाय ! अने कर्ण दुःशासनने कहे छे, 'तुं द्रौपदीनां वस्त्र उतार!'
दुःशासन भरसभामां द्रौपदीनुं वस्त्र दूर करवा जाय छे त्यारे शुं बन्युं ?
'ज्यारे द्रौपदीनुं वस्त्र खेंचायुं त्यारे ते वस्त्रमांथी बीजुं वस्त्र, अने ओमांथी अनेक अनुपम वस्त्र नीकळवा लाग्यां... सभामां द्रौपदीनां वस्त्रोनो ढगलो थई गयो अने दुःशासन थाकीने बेसी गयो.' (सभापर्व, ६१, ४० - ४१ )