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________________ ११६ अनुसन्धान-७५ ( १ ) दर्शावे छे. आपणने बीजो सवाल थाय के तो पछी आ स्थाने, आ दर्शने पहोंचवानो मार्ग शुं ? भादुदास कहे छे: : 'सोहम् वचनने साधीने जोतां, निर्गुण जात जणाणी; अधर तखत पर आप बिराजै, पोते पुरुष पुराणी.' आ सोहम् वचननी साधना छे, निर्गुण दर्शन छे. अधर तखत पर नाम, रूप, गुण रहित मात्र नरनो प्रकाश छे जेनुं सन्तोओ प्रतीकात्मक रूप 'ज्योत'प्रकाशनुं दर्शावेल छे. संतो बोलवानुं बंध करी मात्र आनन्दहेली उभराणी अटलुं कहे छे. भजनना आ 'हेली' स्वरूपने प्रथम वखत मूकी रह्यो धुं त्यारे तेमां समीक्षाने अवकाश छे. नवो दृष्टिकोण उमेराशे तो गमशे. आजनी तके तो 'हेली'नां लक्षणो नीचे प्रमाणेना जणायां छे. १. २. ३. ४. ५. ६. ७. 'हेली' सन्त-भक्तने थयेली अनुभूतिनुं दर्शन करावे छे. 'हेली' साहेली, सुरताने उद्देशीने कहेवामां आवेल छे. 'हेली'नी ध्रुवपंक्ति (प्रथमपंक्ति) मां 'हेली' शब्दप्रयोग आवे छे. 'हेली' निर्गुण सन्त-भक्त - साधुनो साधनामार्ग दर्शावे छे. 'हेली 'नुं दर्शन मायला, भायला, आ मार्गना जाणतलने कहेवाय छे. 'हेली' सचराचरमां अपरोक्ष विलसी रहेला परमात्मानुं दर्शन करावे छे. 'हेली' भजन प्रकार ब्रह्ममुखी वाणी ( वाणीना चार प्रकार पाड्या छे. प्रथम प्रहरमां जीवमुखी, बीजा प्रहरमां गुरुमुखी, त्रीजा प्रहरमां शिवमुखी अने चोथा प्रहरमां ब्रह्ममुखी वाणी गावामां आवे छे) रात्रीना चोथा प्रहरमां गावामां आवे छे. आ हेली गवाया पछी अजवाळं थाय ने ते पछी रामगरी ने ते पछी प्रभाती गवाय छे. अन्ते आनन्दनी हेली ऊभराय छे. * * *
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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