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'हे मारी हेली चडी शिखर पर
अनुसन्धान- ७५ (१ )
जोई ल्यो बेहदका प्रमाण.
दोई कमलकी बीचमें भमरा करत गुंजार; सुगंध बहें फूलनी, फूल खील्या अपार.
मारी हेली उन भ्रमराने पांख नहीं, बीना पांखे उड जाइ, अमी सरोवर ज्यां भर्या उनमें जइ समाय.
मारी हेली उन सरोवरने पाळ नहीं, नहीं सरोवर का रूप, विना पाळे त्यां नीर भर्या, असा खेल अनूप.
मारी हेली भमरा नीर पी शके, पीतां त्रुपत होइ, भाण कहे हंसदासने अना खेल हे सोई. मारी हेली चडी शून्य शिखर पर.
अर्थात् मारी सुरता शिखर पर चडी. आ शिखर ओटले चिदाकाशमां आवेल शून्य शिखर. त्यां कोई हद नथी. त्यां जोइ ल्यो बेहदका प्रमाण. कबीर ते स्थानने शून्यशिखर कहे छे.
'सुन्न मंडलमें घर किया, बाजे शब्द रसाल'
आ सन्त साधुनी सहज योगसाधनानुं दर्शन छे. आ सुन्न घरमां अनाहतनाद बाजी रह्यो छे. 'त्यां दोई कमल की बीचमें-' त्रिनेत्रमां ' भमरा करत गुंजार' परन्तु आ भमराने पांख नथी छतां ते उडी शके छे. रविसाहेब कहे छे : 'चांच बिन चूगना, पाँव बिन चलना, विना पंखसे ऊड जाय'. भवानीदासे 'कण्ठ विनानी कोयल बोले' तेम कह्युं छे. ओटले सन्तोने समान दर्शन थयुं छे.
सन्त रैदास कहे छे : 'जहांक उपजा तहां बिलाई, सहज सुन्नमें रहो लुकाइ.' सन्त दादूदयाल तेने 'सुन्न सहज महि बुनत हमारी' कहे छे.
आ शिखर उपर अमृतनुं सरोवर छे परन्तु तेने कोई पाळ नथी छतां नीर भर्युं छे एटले आ अनुपम खेल छे. हे मारी सुरता ! आ नीर पीतां त्रुपत - तृप्त थवाय छे. आ प्रकारे जे अनुभूति प्रगट थई तेने 'हेली' स्वरूपनुं भजन कहे छे.
'हेली'नी ओक बीजी विशिष्टता से छे के तेमां सन्तोना सवाल जवाब