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________________ सप्टेम्बर ११३ 'अली' कही बोलावीओ छीओ ते 'हेली' शब्द बनी जाय छे ('अ'नो 'ह' बोलीमां छे.) - २०१८ सन्तवाणीना मरमने समजवा माटे आ साहेलीनो अर्थ पण बदलवो पडशे. अहीं साहेली ओटले दृश्यमान सखी, सहियर नथी. सन्तो 'सुरता'ने 'साहेली'- 'हेली' तरीके उद्बोधे छे. सन्त पोतानी अनुभूति जे घटभीतरनी सुरता छेतेने संभळावे छे. आ रमत ज कंईक अद्भुत छे जे अगम अगोचरनी शोध छे, ते घटमां रमी रहेल छे. 'ब्रह्माण्डे सो पिण्डे' आ दर्शन पण सुरताने कहेवाय छे. संतवाणीमां समयनी दृष्टि प्रथम 'हेली' प्रकारनी भजनरचना कबीरनी मळे छे : 'तीहां पोंचत वीरला संत मारी हेली कठणपंथ वैरागका' आ अनुभूतिनुं दर्शन के ते स्थाने पहोंचवुं सहेलुं नथी. जे कोई वीरला सन्त हशे अ ज त्यां पहोंची शकशे. आ वैरागनो पन्थ कठिन छे. मायला दुश्मन (काम, क्रोध, लोभ, मोह, ओषणा) ने मारीने मन, वचन ने कर्मथी वैरागी थवानुं छे. हंसात्मानी आ मानसरोवर सुधीनी यात्रा छे. हंस बनीने जशो तो मानसरोवरना साचा मोती चणवा मळशे. माटे प्रथम तो तमारे तमारी 'कगवावृत्ति' - कागवृत्ति छोडवी पडशे, मन स्थिर राखी, मायाथी मुक्त थई सुरताने ठेरावो. त्यारे कबीरनुं दर्शन कहे छे : 'हे मारी हेली रेन समाणी ओक भाणमां, भाण समाया आकाश, आकाश समाणा ओक वचनमां वचन कोई वीरला पास मारी हेली. ' आ 'वचन'नी विगते वात थई शके, परन्तु ते अहीं अस्थाने छे. 'हेली' प्रकारनी भजनरचनाओ सौथी विशेष भाणशिष्य हंसदासनी मळे छे. आ 'भाण' रविभाण सम्प्रदायना भाणसाहेब नथी. मूळे सिन्ध - पाकिस्तानथी आवेला, कच्छमां वसेला, 'हंसनिर्वाण साहेबपन्थ 'ना स्थापक, प्रचारक. हंसनिर्वाण साहेबनी भजनरचनाओ हेली प्रकारनी छे जे अति लोकप्रिय छे. जेमां अनुभूतिनुं दर्शन अने मरमी प्रश्नोत्तरी 'हेली' मां सांभळवा मळे छे तेमांनी सौथी नोंधनीय हेली छे :
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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