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________________ १११ सप्टेम्बर - २०१८ थडे के संतसाधुने कोई मारुं के तारुं नथी, कोई नानुं के मोटुं नथी, जुदा जुदा पंथना वाद-विवाद साथे कोई लेवा देवा नथी. सन्त लाओत्से कहे छ : “There fore the sage is square but does not cut others, He is angled but does not chip others, He is Straight but does not stretch others, He is bright but does not dazzle others.' अर्थात् : 'अटले संत चतुष्कोण छे परंतु अन्यने कापता नथी; तेने खूणा छे परन्तु अन्यनां छोडियां पाडता नथी; ते सीधा छे परन्तु अन्यने ताणता नथी; ते तेजस्वी छे परन्तु अन्यने आंजता नथी.' जैन साधुना चातुर्मास ओटले तेमना माटे स्वाध्याय अने साधनाना दिवसो. आ स्वाध्याय अने लेखनना प्रतापे जैनसाहित्यना भण्डारो अभरे भर्या छे. आ भण्डारोमां प्राचीन ने दुर्लभ हस्तप्रतो, आध्यात्मिक दर्शन, चिन्तनना ग्रन्थो अने केटलीक उत्तम कृतिओ के जे हस्तप्रतमां पडी छे ने प्रकाशित थई नथी तेवी कृतिओनी शोध, तेनी समीक्षा, तेने प्रकाशित करवी तेमज साहित्यनी दृष्टिले, इतिहासक्रमनी दृष्टिमे, भाषानी दृष्टिले जे उत्तम छे तेने आजे 'अनुसन्धान' सामयिकना माध्यमे पूज्य विजयशीलसूरि महाराज करी रह्या छे ते ओक जैन साहित्यनुं यशस्वी पृष्ठ बनी जशे. आ सामायिक नित्य मळवाथी मारे पण अनायास अभ्यास थतो रह्यो छे. आजे 'अनुसन्धान'७५मा अङ्कमां प्रवेशे छे तेनो राजीपो अनुभवू छु. ___महाराज साहेब गोधरा, अमदावाद, तगडी के महुवामां चातुर्मास गाळता होय त्यारे जवानी आदत पडी गई छे, शुं करुं ? नेडो बंधाई गयो छे ने ए मनभावन रह्यो छे. तेओनी निश्रामां मारे 'स्वामी आनंदघनजी अने कबीरसाहेबना पदोनी तुलना' विषये स्वाध्याय प्रगट करवानी तक मळी हती तेमां जैन साधुनुं अनुभूति दर्शन आनन्दघनजीना पदमां गवायुं छे याद आवे छे : 'निसानी कहा बतावू रे, तेरे अगम अगोचर रूप रूपी कहुं तो कबु नहीं रे, बंधे केसे अरूप रूपारूपी जो कहुं प्यारे, जैसे न सिद्ध अनुप.'
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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