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अनुसन्धान-७५(१)
संत-समागम कीजे... साधो... मारी हेली
. - डो. नाथालाल गोहिल भारतीय आध्यात्मिक जगतमां 'सन्त' अक अवी संज्ञा छे के जेणे परमसत्ने, परमात्माने, अस्तित्वने आत्मसात् करेल छे ते सन्त छे. आवा सन्तोनुं सांनिध्य त्यारे ज मळे ज्यारे जो होय पूर्वनी ओळख-कमाई. जैन अवधू आनन्दघनजी कहे छे:
'साधु संगति बिनु कैसे पेये, परम महारस धामरी' साधुनी संगत, साधु- सानिध्य, परमसत्नी अनुभूति साधु सन्तनी कृपा विना शक्य नथी, आ परम महारसनो स्वाद माणी शकातो नथी. मारी सद्नसीबी मे रही छे के परिवारमाथी भजन अने सन्तोनुं सांनिध्य मळ्युं छे, आ संस्कारना बळे मने नन्दीग्राम मळ्यु. नन्दीग्राममां सन्त सांई मकरन्दभाईनुं सांनिध्य मळ्युं, तेमना प्रतापे मारी सूतेली चेतना जागी ऊठी. तेमना मार्गदर्शनथी भजन-संशोधनना मार्गे वळ्यो, लखतो थयो ने भजननो परम महारस आस्वादी शक्यो.
साधु सन्तना समागमथी अन्य साधु, सन्त, साधकना दर्शन थाय छे ने तेमनो पण कृष्णप्रसाद पामी शकाय छे. आवा पूज्य सन्त, साधु, साधक विजयशीलसूरि महाराज छे. तेमना सांनिध्यथी भजन ने साधनानी अवावर केडीओ चालवानी तेमज संशोधन करवानी रीति मळी. सौ प्रथम तो तेम निर्मळ ने बाल्यसहज हास्य स्पर्शी गपुं. तेमनी विमल वाणी सांभळता अनेकविध आध्यात्मिक दर्शननी माहिती मळी. तेओ जाणे के मात्र अंत्यवासी ज नहीं पण परिवारना वडील बन्धु होय तेम आपणा खबर अन्तर पूछी दिलासो आपे त्यारे आपणे परम शाता अनुभवीओ.
महाराज साहेब जैन साधु होवा छतां धर्मनिरपेक्ष रही सर्वधर्मसमभाव प्रगटावी रह्या छे. तेमने आ सृष्टि, जीवमात्रने ब्रह्मरूप मानता होय तेवो मारो अनुभव छे. तेओ गोधरा मुकामे चातुर्मास गाळी रह्या हता त्यारे विविध पन्थ परम्पराना सन्तो विशे संगोष्ठि तो राखेज परन्तु तेनी साथे अरवल्लीनी पर्वतमाळामां रहेता आदिवासीओने बोलावी, तेमनी प्राचीन परम्परानो 'धूळानो पाट' - ज्योतपाट उपासराना आरासरामां योजी तेमना नृत्य साथे 'पजन'- भजन सांभळे त्यारे अम