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अनुसन्धान-७५(१)
पर प्रभुनु सिंहासन दर्शाववा माटे सिंहनी पूर्ण आकृति बने तरफना खूणाओ पर होय छे जे आ काळनी विशेषता गणाय. आयागपटो, तोरणो अने अलकृत बारशाख :
प्राचीन समयनी उत्तममां उत्तम कलाकृतिओनी यादीमां विशिष्ट नाम आयागपट के शिलापटनुं छे. आ स्थळेथी २७ जेटला शिलालेखयुक्त आयागपटो मळ्या छे. शिलालेखोमां अङ्कित प्राचीन ब्राह्मी लिपिना शब्दोना आधारे (On the basis of palaeographic and aesthetic ground) विद्वानो ए सर्वने ई.पूर्वे स्थापित थयेला जणावे छे. आ प्रकारना शिल्पोनी विशेषता नीचे मुजब छे -
नवकारमन्त्रना प्रथमपदथी शिलालेखनो आरम्भ थाय छे. बे फूटना चोरस पत्थरना पट पर उत्कीर्ण कलामां स्वस्तिक, नन्द्यावर्त, धर्मचक्र, सम्पूर्ण स्तूप, आर्यावती देवी उपरान्त मंगळ प्रतीको दृष्टिगोचर थाय छे.
अहिं केन्द्रमां जिनेश्वरनी मूर्ति अने अनी चारे बाजु सम्यक्ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनी रत्नत्रयीनी मध्यमां बिराजमान अरिहंतनी मूर्ति पर छत्र अने चैत्यवृक्ष होय छे. त्रण लोकना जीवो रत्नत्रयीना सिद्धान्तना आधारे सिद्धत्व पामी शके छे अq प्रतिपादन अहिं जणाय छे.
केटलाक अगत्यना आयागपटो, नीचे मुजब छे -
१. लोणशोभिका नामनी गणिकाना आयागपट तरीके जाणीता शिल्पमां सम्पूर्ण स्तूप दृष्टिगोचर थाय छे - अहीं स्तूपना तोरणद्वार पर पहोंचवा माटे अष्ट सोपान नजरे पडे छे अनी बन्ने तरफ गवाक्षमा क्षेत्रपाल-कुबेरादेवी जोवा मळे छे. उपरान्त, सुन्दर अलङ्कृत तोरण, रेलींग, त्रण वेदिकाओ, सौथी उपर चैत्यवृक्षनी वेलीओ अने अनी नीचे अर्धगोळाकार डोम - स्तूपर्नु मूळ माळखुं, बन्ने बाजुओ स्तम्भनी उपर धर्मचक्र अने सिंह अथवा हाथी कंडारेलो जोई शकाय छे. रायपसेनीयसूत्रना आधारे द्वारनी उभय बाजुओ सोळ-सोळ शालभञ्जिकाओ स्थापित करी छे. अहिं पण प्रतीक तरीके बन्ने तरफ आकर्षक भावभङ्गिमा धरावती ओक-ओक पूतळी स्थापित करेली देखाय छे. सौथी उपरना भागे बन्ने तरफ जैन साधु आकाशमार्गे स्तूपना दर्शने आवता बताव्या छे. तेओ जमणा हाथे वन्दन करे छे तथा तेमना डाबा हाथमां पात्र अने कंबल धारण करेला जोवाय छे.
२. शिवयशानो आयागपट जेने अक नर्तके स्थापित कर्यो हतो. अना