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सप्टेम्बर - २०१८
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खोदकाम कराव्युं तेमां आ स्तूपनो टेकरो पण हतो. आ अति विशाळ स्तुपमांथी घणां शिल्पो अने प्रतिमाओ प्राप्त थया. अनी इंटो तथा स्तूपना स्थापत्यनुं बारीकाईथी अवलोकन करीने विन्सन्ट स्मिथे जणाव्यु के - "मोहें-जो-डेरोनी प्राचीन सभ्यता पछी अन्य कोई प्राचीन इमारत भारतमां मळी आवेल होय तो ओ जैनोना आ स्तूपनी छे." मोटाभागना विद्वानो अने १०००-१२०० ई.स. पूर्वेथी पहेलानी गणे छे. आर. सी. शर्मा पण स्तूपना बांधकामोना अवशेषोमां पाणीना निष्कासननी व्यवस्था जोईने उपरोक्त विधानने टेको आपे छे.
ओक प्रतिमा लेखमां शक-कुषाण संवत ७९ आपी छे. अना लेख मुजब "संवत ७९, वर्षाऋतुना चोथा महिनाना वीसमा दिवसे कोटिकगणनी वैरी शाखाना आचार्य वृद्धहस्तिो मुनिसुव्रतस्वामीनी आ प्रतिमानुं देवनिर्मित स्तूपमा स्थापन कराव्यु". आ प्रतिमामां प्राचीन समयमां अहिंना स्तूपने देवनिर्मित कहेवामां आवतो हतो ओवो अगत्यनो दस्तावेजी पुरावो छे. अहिं साधुना हाथमां मुखवस्त्रिका देखाय छे.
अक अन्य प्रतिमाना पबासनमां अक स्त्री गोचरी वहोराववा माटे पात्र लईने बिराजी छे ज्यारे साधुना अक हाथमां झोळी अने बीजा हाथमां प्रतिलेखना छे. ओक खण्डित मूर्ति, फक्त पबासन ज रहुं छे. अमां सचेलक अने अचेलक बंने मुनिओ साथे उभा छे. शिलालेखवाळी सरस्वतीनी प्रतिमाना हाथमा हस्तप्रत छे. ओक तरफ जैन साधु हाथमां कुम्भ लइने बताव्या छे. अहिंथी प्राप्त थयेल ओक साधुनी प्रतिमा मस्तकविहीन छे परन्तु अना हाथमा हस्तप्रत छे अने बीजो हाथ आशीर्वादमुद्रामां छे. प्रतिमाओना पबासनो पर अंकित चतुर्विध संघ :
पुरातनकाळथी तैयार थती जैन प्रतिमाओ बेज मुद्रामां होय छे - पद्मासन अने खड्गासन. मथुराकळानी पद्मासनवाळी प्रतिमाओना पबासन पर शीलालेखनी नीचे मध्यमां धर्मचक्र, तेनी जमणी बाजु साधुओ अने श्रावको तथा डाबी तरफ साध्वीओ अने श्राविकाओ कंडारेला होय छे. प्रभुना दर्शन साथे चतुर्विध संघने तीर्थङ्कर मानी नमस्कार करवानो कदाच आशय होई शके. दरेक प्रतिमालेखनो प्रारम्भ 'सिद्धम्' शब्दथी थाय छे जे दरेक आत्माने तेना सिद्धत्व पामवानी क्षमता दर्शावतुं होय अq बनी शके. पद्मासनवाळी प्रतिमानी पादपीठ