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अनुसन्धान- ७५ ( १ )
स्तूप अने बेदेरासरो- अक श्वेताम्बर अने ओक दिगम्बर उपरान्त घणी इमारतोना पायाओ मळी आव्या जे बसो ई. पूर्वेथी लई बारसो ई. ना छे. जैन धर्मने स्वतन्त्रधर्म तरीकेनी मान्यता अने 'देवनिर्मित स्तूप' शब्द :
मथुरापुरीमां तैयार कराती मथुरा शैलीनी प्रतिमाओ अने शिल्पो पर प्रेरणादायी गुरुजनोनी वंशावली - कुळ - गण - शाखा, अने भरावनारनुं नाम, स्थापनावर्ष तथा राज्य करतां राजानुं नाम, शिल्पनो प्रकार अने क्यां स्थापित कराय छे ते भवननुं नाम आपवानी प्रथा हती.
अक समये इतिहासकारो जैन धर्मने स्वतन्त्रधर्म तरीके स्वीकारता न हता. परन्तु अक प्रतिमा पर संवत ७९मां 'देवनिर्मित स्तूप' मां स्थापित थई होवानो उल्लेख अने अन्य त्रण बारमी सदीनी मूर्तिओ पर तेमने 'देवतेती' मां स्थापित कराई होवाना उल्लेखो जोतां तेमने पोतानी मान्यता 'जैन धर्म बौद्ध धर्मनी शाखा छे' से भूलभरेली जणातां जैनधर्मने स्वतन्त्र धर्म तरीके मान्यता आपी. अहींथी वधु प्रतिमाओ मेळववानी लालचे तेमणे उतावळे स्तूपनुं खोदकाम कराव्यं, जेथी स्तूपनुं स्थापत्य केवुं हतुं के केटला मन्दिरो, उपाश्रयो, धर्मशाळा, वगेरेना पायाओ हता तेना पर ध्यान न अपायुं अन्ते ओ Site ने पूरी दईने विशाळ प्रतिमाओ, स्तम्भो, शिल्पो इत्यादि विविध म्युझियमोमां मोकलवामां आव्या. सौथी वधु अवशेषो लखनउना म्युझियममां छे.
मथुरानगरनुं शास्त्रोमां महत्त्व :
मथुरानगरीना उल्लेखो ज्ञातासूत्र, प्रज्ञापनासूत्र, महापुराण वगेरे ग्रन्थोमां मळे छे. जैनोना पवित्र यात्राधामना रूपमां आ नगर सदीओथी जाणीतुं हतुं महुरी - महुराउरी - मथुरापुरीने 'जगचिंतामणी चैत्यवंदन' मां दुःख अने पापनो नाश करनार सुपार्श्वनाथना तीर्थ तरीके वन्दन कराय छे - " महुरि सुपास दुहदुरिअ - खण्डण'.
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मथुराना देवनिर्मित स्तूपना 'उल्लेख आवश्यकनिर्युक्ति, आवश्यकचूर्णि अने टीका, निशीथचूर्णि, व्यवहारचूर्णि टीका वगेरे घणा जैन शास्त्रोमां जोवा मळे छे. निशीथचूर्णि वगेरेमां स्तूपने देवीओ निर्माण कर्यो होवानी कथा उपरान्त ओना स्थापत्यनो प्रकार वर्णव्यो छे.
आचार्य संगमसूरि रचित 'तीर्थमाळा', सोमदेवसूरिना 'यशस्तिलकचम्पू'