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अनुसन्धान-७५(१)
'नेमिरङ्गरत्नाकरछन्द' भावनिरूपणनी दृष्टिले खूब हृदयस्पर्शी कृति छे. नेमिनाथ लग्नना वरघोडामांथी सीधा गिरनार पर तप करवा जता रहे छे त्यारे राजिमतीनो आशाभङ्ग थाय छे. जीवनना सर्व सुखपदार्थ ओने नीरस लागे छे. ओनी सखीओ आ जाणती नथी अटले शणगार, आभूषण, खानपान, फूलशैया जेवी भोगसामग्री दर्शावे छे. ओ वखते भग्नहृदयी राजिमती 'अहं अहं' कही तेनो अस्वीकार करे छे. आ 'अहं अहं' उद्गारने कवि कुशळताथी काव्यपंक्तिमां वणी लीधो छे, आ रीते :
सहीय भणिइ : सुणि देवि, अम कहि करूं कि? 'अहं अहं' उगटि अंगि करेवि, पंक परिहरु कि ? 'अहं अहं' नवउ ति नवसर हार, गलि धरूं किं ? 'अहं अहं' कुसुम-सेज सुकुमाल सोई पत्थरुं किं ? 'अहं अहं'
आ पछी. राजिमतीनी सघन विरहव्यथा- वर्णन कवि करे छे; जे आ कृतिनो सौथी वधु आस्वाद्य अंश छे. अमांनी केटलीक पंक्तिओ सांभळीओ : खिण खाटई खिणि वाटइ लोटइ, खिणि उंबरि खिणि ऊभी ओटइ खिणि भीतरि खिणि वली आंगणइओ, प्रिय विण सूनी वलीआं गणइओ.
सूणि सूणि सहियर आज राज मुज न गमइ दीठउं भोजनि कूर कपूर पूर नवि लागइ मीठउं कोमल कमल मृणाल विरहदव-झाल न झल्लइ
प्रिय दीठउ परतखि सोइ मन मांहइ सल्लइ.
आ रचनानुं शीर्षक 'नेमिरङ्गरत्नाकरछन्द' घणुं सूचक छे. मध्यकालीन साहित्यमां झडझमक प्रासानुप्रासवाळी शैली अने विविध मात्रामेळ छन्दोमां लखायेली कृतिने 'छन्द' तरीके ओळखाववानी रूढ परम्परा हती. आ कृतिमा छन्दवैविध्य घणुं छे. दुहा, रोळा, छप्पा, हरिगीत, चरणाकुळ, त्रिभङ्गी, दुमिळ, पध्धडी जेवा अनेक छन्दोने लीधे आ पद्यरचना प्रभावक बनी छे.
___कविना छन्दप्रभुत्वनी जेम भाषाप्रभुत्व पण प्रशंसनीय छे. छन्दरचना कृत्रिम न बने ओ रीते काव्यभाषा प्रयोजाई छे. प्रास-अनुप्रास ने आन्तरयमकनी