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अनुसन्धान-७५(१)
विना, समजावट द्वारा, योग्य वळतर आपी, भूमिसम्पादन करे छे. मन्दिरना बांधकाम वखते पण ओ वेठिया मजूरी करावता नथी, पण श्रमिको प्रसन्न थाय तेवी मजूरी चूकवे छे. कुशळ कारीगरो ने शिल्पीओने तो ओ सोनामहोर आपी पुरस्कृत पण करे छे. आ बधामां ओक समर्थ सत्ताधीशना मानवीय अभिगमनो आपणने परिचय थाय छे. विमलमन्त्री जैनधर्मना अनुयायी होवा छतां, बधा धर्मना लोको माटे विश्रामस्थानो अने शिक्षण माटे पाठशाळाओ बंधावी आपे छे तेमां पण ओक सहिष्णु अने समदर्शी अधिकारीनो परिचय मळे छे..
आवा युद्धवीर, धर्मवीर अने दानवीर विमलमन्त्रीने, कवि लावण्यसमय प्रबन्धकाव्यना चरित्रनायक तरीके पसंद करे छे ते खरेखर योग्य जणाय छे. विमल मन्त्रीना आ चरित्रकाव्यमां, विमलपत्नी श्री अने माता वीरमतीनी चरित्ररेखाओ पण हृदयस्पर्शी छे. गुजरातना राजा भीमदेव, सिन्धुदेशना राजवी, रोमनगरना सुलतानो अने अमनी बेगमबीबीओ, गुरुदेव धर्मघोषसूरि जेवां अन्य चरित्रो कथापोषक रीते रजू थयां छे.
__ 'विमलप्रबन्ध'नी अक वधु विशेषता ते अनी वर्णनात्मकता छे. कविनी वर्णनशैली आम तो परम्परागत छे, छतां प्रसंगोपात्त ओ आकर्षक पण बने छे. कलियुगनुं वर्णन, सुलताननी बीबीओ- हास्यमय वर्णन, बंभणियाना राजा साथेनुं तादृश युद्धवर्णन, विजयी विमलना सत्कारनुं वर्णन, चन्द्रावतीनगरीनुं वर्णन जेवा केटलाय वर्णनखण्डो कृतिने रसात्मक बनावे छे. कृतिनी गेयता पण आस्वाद्य छे. जुदी जुदी मात्रामेळ देशीओ अने गेयढाळोथी अनो पद्यबन्ध बंधायो छे.
_ 'विमलप्रबन्ध'नी काव्यभाषा तत्कालीन गुजरातीना अभ्यासनी दृष्टिले घणी महत्त्वनी छे. अमां कविले घणी कहेवतो पण कुशळताथी वणी लीधी छे. 'मगण मरण समाणुउ जोइ' अने 'गाजवीज घण थोडा मेह' जेवी उक्तिओ आजे पण आपणी भाषामां थोडा फेरफार साथे टकी रही छे. आ प्रबन्धकाव्यनी वच्चे वच्चे सुभाषित जेवी केटलीक काव्यपंक्तिओ चमक चमक चांदरणां जेम चमकती दीपी ऊठे छे, अनां बे'क उदाहरण जोइओ :
१. एक वयरि, विषवेलडी मे बिहु, त्रीजी व्याधि
जाउ उगती छेदीइ, तु सिरि हुइ समाधि