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अनुसन्धान-७५(१)
कवि लावण्यसमय
- राजेश पंड्या
उमाशङ्कर जोशीनुं एक काव्य छ : 'गुर्जरी गिरा'. अनी शरुआत आ रीते थाय छे : 'जे जन्मतां आशिष हेमचन्द्रनी / पामी, विरागी जिन साधुओओ । जेनां हींचोळ्यां ममताथी पारणां'. आम, गुजराती भाषाना आरम्भकाळे, हेमचन्द्राचार्यथी लईने इ. १८५० सुधी अनेक जैन कविओ थया. गुजराती भाषा-साहित्यना घडतरमां अमनुं बहुमूल्य प्रदान छे.
आवा ज ओक महत्त्वना जैन कवि छे, लावण्यसमय. लावण्यसमय पंदरमी सदीना एक समर्थ गुजराती कवि छे. कवि पोते ज पोतानो परिचय आपतां जणावे छे:
नवमइ वरसि दिख वर लीध, समयरत्न गुरि विद्या दीध सरसति माता मया तव लही, वरस सोलम वाणी हुइ रचिया रास सुंदर-संबंध, छंद कवित चुपइ प्रबंध विविध गीत, बहु करिया विवाद, रचीआ दीप सूरि संवाद
सरस कथा हरीआली कवइ, मोटा मंत्री राय रंजवइ.
आ कडीओमां कविओ साधुदीक्षा, गुरुनाम, सर्जननो आरम्भ अने रास, प्रबन्ध, चोपाई, संवाद, गीत जेवां स्वरूपोमां करेला काव्यलेखननो निर्देश को छे. लावण्यसमये लगभग चालीस जेटली कृतिओनी रचना करी छे. अमां 'विमलप्रबन्ध' अने 'नेमिरङ्गरत्नाकर छन्द' जेवी कृतिओ तो मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां खूब जाणीती छे. सौ पहेला 'विमलप्रबन्ध' विशे थोडीक वात :
___ 'विमलप्रबन्ध' ओ औतिहासिक कथानक पर आधारित दीर्घ चरित्रकाव्य छे. सोलंकी युगना राजा भीमदेव पहेलाना समय (ई. १०२४ थी ई. १०६६)मां थई गयेला गुजरातना सुप्रसिद्ध राज्यमन्त्री-दण्डनायक विमलदेवतुं जीवनचरित्र अमां आलेखायुं छे. जो के 'विमलप्रबन्ध'ने शुद्ध औतिहासिक काव्य कही न शकाय. केम के अमां दन्तकथाओनो पण घणो आधार लेवामां आव्यो छे.