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सप्टेम्बर - २०१८
१. जैन स्रोतना मुख्य धर्मग्रन्थनी जे कथाओने रासक गेय छन्दमां मूकी छे तेने प्रबन्धकाव्यना प्रकारोनी दृष्टिो कोई प्रबन्ध मध्ये आवेली पेटा कथाने ज्यारे कोई सम्पूर्ण कृतिना प्रबन्धरूपमां बांधे त्यारे अने स्वरूपदाखल आख्यान कृति गणवी जोई.
___आख्यानना जे प्रकार-प्रवाहभेद पडशे तेमां वैदिकस्रोतनी आख्यानकृतिओ अने जैनस्त्रोतनी आख्यानकृतिओ अम बे पडशे. प्रबन्ध तरीके- रूप बन्ने स्रोतमां समान छे. बन्नेमां आख्यानककृतिओ छे जे कोई मुख्य प्रबन्धमां पेटारूपमां, दृष्टान्त वगेरे रूपे आवी छे. लंबाण थतुं अटकाववा मात्र निर्देश ज करुं के मारा 'प्राचीन भारतीय कथासाहित्य' (हसु याज्ञिक, पार्श्व प्रकाशन (२०१६) पृ. ९३ थी ११२)मां प्राकृतमांथी आवेली मध्यकालीन गुजरातीनी रास / चोपाई / प्रबन्ध आदि शीर्षक नामे रचनाओनी कामचलाउ यादी आपेली छे. अमां आगम अने आगमोत्तर कृतिओमांथी आवेली कथाओनो निर्देश कर्यो छे ते आख्यानक कृतिओ कई ते स्पष्ट करे छे.
२. मनोरंजक लोककथावर्गनी अनेक कृतिओ छे जे शुद्धतम स्वरूपनी दृष्टिले पद्यवार्ता / पद्यकथा छे. मध्यकालमा सामान्य रीते आवी मनोरंजक लौकिक कथाओने अमुकनी चोपाई, दूहा वगेरे नामे ओळखावी छे. क्यांक ओ माटे प्रबन्ध ओवी जातिगत संज्ञा छे. जैनस्रोतमां पण राससाहित्यमां मूकेली कृतिओ आपणा विवेचने जेना माटे ‘पद्यवार्ता' ओवो स्वरूपवाचक प्रयोग को छे ओवी ज छे. हकीकते, आख्यान, पद्यवार्ता अने तिहासिक प्रबन्ध आ त्रणे प्रचलित बनेली स्वरूपसंज्ञानी चर्चामां ज १. वैदिक स्रोतनी २. जैनस्रोतनी ओवा बे भाग पडशे. आज रीते १. खण्डमां लखायेली २. सळंगबन्धनी तेवा पण प्रकारभेद तथा १. मुख्य कथारूप अने २. कथामाळा के कथाशृंखला ओवा तथा १. लोकभोग्य अने रजूआतनी २. विद्वद्भोग्य अने परिशीलन माटेनी अवा भेद पडशे. मध्यकालीन साहित्यनी रूपसुन्दर-कथा, माधवानल कामकन्दला (गणपति) अने जैन स्रोतनी जयवंतसूरिनी 'शृङ्गारमंजरी' आ वर्गमां आवशे.
पद्यवार्ता मुख्यत्वे दुहा-चोपाइमां होय छे परन्तु जैनस्रोतमां धर्मसन्दर्भ उमेराय छे ते, तथा ओ गानढाळमां होय छे ओ भेद छे. परन्तु स्वरूपदाखल आ जैनस्रोतनी कथाओ पण कुळमूळनी दृष्टिले लौकिक कथाओ छे. धर्मतत्त्वनी