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अनुसन्धान-७५(१)
असर मात्र बाह्य छे, कथा- मूळ कथानक बदलातुं नथी. आ रीते ज धम्मिल, अगडदत्त, अञ्जनासुन्दरी पण आप्यानक छतां कथातत्त्वे मनोरंजक लोककथाना वर्गनी छे.
३. व्यक्ति । घटना हकीकतमूलक रासक कृतिओ जेना केन्द्रस्थ नायक वस्तुपाल, तेजपाल वगेरे छे तथा यात्रासंघ, चैत्यविहारादि हकीकतमूलक सामग्री छे ते आ प्रकारनी पद्यवार्ताना वर्गमां आवशे.
हकीकते, जैतिहासिक प्रबन्ध, पण आपणा विवेचने, कान्हडदे प्रबन्धना सन्दर्भ ज प्रयोजी छे, जेना पण स्वरूपदाखल केटलाक प्रश्नो छे. आनी विगत में पार्श्व प्रकाशित मारा मध्यकालीन साहित्यना पुस्तकमां मध्यकालीन जातिओ अने स्वरूपोमा चर्चेली छे तेथी अनी विगतमां अहीं जतो नथी.
___४. केटलीक कृतिओ अवी छे के अनी कथ्यसामग्रीना आधारे अने उपरना कोई ओक वर्गमां म्की न शकीओ. केटलीक कृतिओ शुद्ध रास स्वरूपनी पण जणाय. ओटले के प्रमाणमा लघु होय, रासरूपमां गवाती होय.
अहीं आ चर्चाना अनुषंगे बीजा पण केटलाक मुद्दाओ छे. तेमा मुख्य मुद्दो, जे मध्यकालीन कृतिमां ज कर्ताओ पोते ज ओना जातिस्वरूपनो निर्देश को होय तेनो तथा पुष्पिकामां हस्तप्रतना रूपमां मळती कृतिमां लहियाओ कृति अंगे जे कोई जातिस्वरूपनो उल्लेख को होय, अने गम्भीरतापूर्वक ध्यानमा लेवानो, समजवानो छे. क्यारेक आवा कोई पर्यायसूचनमां कर्तानी शिथिलता-अज्ञान धारी लेवाया ते भूलभर्या छे. दा.त. गणपतिओ पोतानी कृतिने 'दुहामां बांधेलो प्रबन्ध' जणाव्यो ते भूल / क्षति मानवामां आवी. आ पायानी भूल छे. अनां कारणमूळमां ऊंडा न ऊतरवानुं आ परिणाम छे. कोई कृतिमां कर्तानो हेतु अधिकारिक रूपमा मात्र रोचक मनोरंजक कथा आपवानो नथी, परन्तु आवी कथाना माध्यमे रोचक-मनोरंजकता उपरान्त साहित्यकृति तरीके तत्त्वविचार, रस, अलङ्कार वगेरे ज मुख्य दृष्टि केन्द्रमां राखीने साहित्यिक कृति सर्जवानो छे. त्यां मात्र आवी उत्पाद्यकथा माटे छन्दाधारित अमुकनी चोपाई, अमुकना दुहा के मात्र वारता जेवी संज्ञा प्रयोजवाना बदले 'प्रबन्ध' ओवी संज्ञा प्रयोजी छे. आना सचोट सुस्पष्ट उदाहरणो १४मी सदीनी रचना 'चतुर्विंशति प्रबन्ध' अने १५मी सदीना गणपति कायस्थकृत 'माधवानल कामकन्दला प्रबन्ध' छे. अहीं बन्ने कृतिओमां कथातत्त्व साधन छे, साध्य नथी. राजशेखरसूरि आत्मानी