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________________ ७६ अनुसन्धान-७३ छे अने चित्तना अधिकरणरूप शरीरमा आश्रित छे ओवी क्रिया- सामान्य स्वरूप देखाडनारी बाबतोने 'सद्धर्म'ना लक्षण साथे शी निस्बत ? वळी, 'यतः'थी 'चित्त'- ग्रहण करवा माटे 'चित्तप्रभवः'नो विग्रह पण केवो अटपटो करवो पडे छे? उपाध्याय श्रीयशोविजयजी भगवन्तना विवरण प्रमाणे जोईओ तो, जे 'अधिकार' अने 'अधिकरण' शब्द बहु जुदी अर्थच्छायाओ धरावे छे, ओ बन्नेने तेमणे पर्यायवाची बनाव्या छे, जे विचारणीय लागे छे. वळी, 'क्रियाना अधिकारथी जन्य' आवो अर्थ जणाववा माटे मान्य परिपाटी प्रमाणे 'क्रियाधिकरणाश्रितं' कहेवाय, 'क्रियाधिकरणाश्रयं' नहि. बीजी वात, 'क्रिया' अने 'कार्य' जेवा सामान्य शब्दोना आवा विशिष्ट अर्थो करवाना छे ते सूचवनारी कोई कडी आखा सन्दर्भमां जडती नथी. वास्तवमां आ गाथा पछीनी त्रीजी गाथामां ज अत्रे 'क्रिया' अने 'कार्य' थी | लेवानुं छे ते स्पष्ट सूचवायुं ज छे - रागादयो मलाः खल्वागमसद्योगतो विगम एषाम् । तदयं क्रियाऽत एव हि पुष्टिः शुद्धिश्च चित्तस्य । आनुं तात्पर्य ओम समजाय छे के "रागादि मलोनो, आगमने अनुसरीने थता सद्योगथी, अपगम थाय छे. तेथी आ मलविगम ‘क्रिया' छे अने तेनाथी चित्तनी पुष्टि-शुद्धि थाय छे." बीजी गाथामां जणावाया प्रमाणे पुष्टि-शुद्धिवाळं चित्त ज धर्म छे. तेथी अत्रे ओवं तात्पर्य नीकळशे के 'मलविगम' ओ ‘क्रिया' छे अने तेनाथी प्रादुर्भाव पामतो 'धर्म' ओ तेनुं 'कार्य' छे. हवे आ सन्दर्भने पकडीने 'यतः क्रियाधिकरणाश्रयं कार्यम्' ओ पंक्तिनो अर्थ विचारीओ तो - 'धर्म' चित्तमां जन्मे छे (चित्तात् प्रभवो यस्य सः) आवा आचार्यना विधान सामे प्रश्न थई शके के 'आQ केम ?' आना जवाबमां आचार्य न्यायशास्त्रनो बहु जाणीतो नियम देखाडे छे. न्यायशास्त्रमा कारण अने कार्यसामानाधिकरण्य संमत छे. आनो अर्थ ओ थाय के कारण (कारणात्मक क्रिया) जे अधिकरणमा प्रवर्ते ते अधिकरणमां ज कार्य जन्मे. जेम के अग्निसंसर्गरूप क्रिया ज्यां प्रवर्ते त्यां ज पाक थाय, बीजे नहि. आ ज नियम अत्रे लागु पाडवानो
SR No.520574
Book TitleAnusandhan 2017 11 SrNo 73
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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