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सप्टेम्बर - २०१७
आनो मतलब अम समजाय छे के श्रीदशवैकालिकसूत्रना चूर्णिकार भगवन्तोना मते अचित्तमहास्कन्ध पराघाती छे, अपराघाती नहि. तेथी ते अनन्ता अनन्तप्रदेशिक सूक्ष्मपरिणामी स्कन्धोने पोताना रूपे परिणमावीने लोकमां व्याप्त थाय छे, केवल स्वपुद्गलोथी नहि. अने तेम छतां लोकमां व्याप्त थवामां तेने त्रणने बदले चार समय लागे तो तेमां तथाप्रकारनो विस्रसा परिणाम ज कारणभूत गणी शकाय.
आ समग्र चर्चा- तात्पर्य ओ छे के विशेषावश्यक-महाभाष्यकार श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण अने मलधारी श्रीहेमचन्द्रसूरिजी सामे अचित्तमहास्कंधना समुद्धातनी प्रक्रिया अंगे जे परम्परा हती, तेना करतां कोई जुदी ज परम्परा श्रीदशवैकालिकसूत्रना चूर्णिकार भगवन्तो सामे होवी जोईओ, अने तेओए तेने अनुसरीने प्रतिपादन कर्यु हशे.
परन्तु, अनुयोगद्वारसूत्रना टीकाकार भगवन्तो आ सन्दर्भे अक नवी ज वात जणावे छे. तेओना कहेवा प्रमाणे अचित्तमहास्कन्ध मूळभूत रीते कोई ओक द्रव्य नथी, पण सकल लोकमां व्याप्त सूक्ष्मपरिणामे परिणत सघळु पुद्गलद्रव्य ज, तथाप्रकारना विस्रसा परिणामथी, पोताना स्वरूपने छोड्या वगर, (स्फटिकमां कृष्णवर्णना उपरंजन वगेरेनी जेम) अचित्त-महास्कन्धरूपे परिणत थाय छे, अने केवलि-समुद्घात जेवी प्रक्रिया द्वारा सकल लोकमां व्याप्त थाय छे. आ समुद्घातनी प्रक्रियानी समाप्ति साथे ते स्कन्धनो पण विनाश थाय छे. दरियामां आवती भरतीना दृष्टान्ते आ आखी प्रक्रिया समजवानी छे.
टीकानो मूळ पाठ - "बायरपरिणामेसु आणुपुब्विदव्वपरिणामो भवति, णो अणणुपुव्विअवत्तव्वगदव्वत्तणेण, जतो बायरपरिणामो खंधभावे चेव भवति । जे पुण सुहुमा ते विविधा वि अत्थि । किं च, जदा अचित्तमहाखंधपरिणामो भवति तदा सव्वे ते सुहुमा आयभावपरिणामं अमुंचमाणा तप्परिणता भवंति, तस्स सुहुमत्तणतो सव्वगतत्तणतो य । कहमेवं ? उच्यते, छायाऽऽतपोद्योतबादरपुद्गलपरिणामवद् (अग्निशोध्यवस्त्राग्निपरिणामवत् - चूर्णि) अणियत्तकालट्ठाई वट्टो उड्ड-अध चोद्दसरज्जुप्पमाणो सुहुमपोग्गलपरिणामपरिणतो पढमसमए दंडो भवति, बितिए कवाडं, ततिए मंथकरणं, चउत्थे लोगपूरणं, पंचमादिसमएसु पडिलोमसंघारेण अट्ठमसमयंते सव्वहा तस्स खंधत्तविणासो । एस जलणिधिवेला इव लोगापूरण