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अनुसन्धान-७३
असल प्रतिओमां लभ्य छे तेथी आ सवाल ऊभो थयो छे. छतां जैनग्रन्थोमां, सूचिओमां अने सम्प्रदायमां 'उपमिति' शब्दथी ज आ ग्रन्थनी ओळख ओटली बधी जाणीती थयेली छे के अमां फेरफार करवानी जरा पण जरूर नथी. जूनी प्रतोमां पण 'उपमिति' अभिधानपूर्वक ज आ ग्रन्थनो निर्देश थयो छे." आम, तेओ फक्त परम्पराना अनुसरण खातर ज - उपमितिभवप्रपञ्चाकथा ओ नाम स्वीकारवानुं जणावे छे.
आ सन्दर्भे ते ज पुस्तकना १९मा पृष्ठ पर, प्रो. पिटर्सन द्वारा सम्पादित अने बंगाळनी रोयल एशियाटिक सोसायटी द्वारा प्रकाशित उपमितिभवप्रपञ्चाकथा ना उपोद्घातमां डॉ. हर्मन जेकोबी ओ आ सम्बन्धे जे लख्युं छे ते जणावायुं छे
"Upamitibhavaprapanchā kathā. The proper form of the title is doubtful. The first part of the compound is usually given as Upamiti, but at the end of the 2nd & 3rd prastvas and in the Prabhāvakacharitra as Upamita. I should have preferred the latter; but the title chosen by Prof. Peterson is not altogether wrong and may therefore be retained.”
__हमणां उपाध्याय श्रीयशोविजयजीरचित धर्मपरीक्षा ग्रन्थमां पण बे ठेकाणे उपमितभवप्रपञ्चाकथा नाम ज वांचवा मळ्यु. आ ग्रन्थमा उपमितिनी लघु अने बृहत् - ओम बे आवृत्ति विशे पण जाणवा मळे छे.
__ आ बधा परथी जणाय छे के आ कथानुं साचुं नाम तो 'उपमितभवप्रपञ्चा' कथा होवू जोइओ. पण पाछळथी कोईक कारणसर 'उपमितिभवप्रपञ्चा' नाम रुढ थई गयुं हशे.
२. अचित्तमहास्कन्धमां पराघातत्व अंगे विभिन्न मन्तव्यो
__अचित्तमहास्कन्ध पुद्गलास्तिकायनो ओक अनन्तानन्तप्रदेशी सूक्ष्मपरिणामी स्कंध छे. वर्गणानी प्ररूपणामां सौथी छेल्ले अनी प्ररूपणा थती होय छे. आ अचित्तमहास्कन्धनी समुदघात-प्रक्रिया अंगे हमणां अक नवी जात जाणवा मळी.
अचित्तमहास्कन्ध समुद्धातनी प्रक्रिया द्वारा लोकव्यापी बनतो होय छे ए जाणीती वात छे. आ प्रक्रिया केवलिसमुद्धातनी जेम आठ समयनी ज होय छे