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सप्टेम्बर - २०१७
ट्रंक नोंध
- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय १. उपमितिभवप्रपञ्चा कथाना नाम अंगे विचारणा
श्रीसिद्धर्षिगणि विरचित उपमितिभवप्रपञ्चा कथा सुविख्यात छे. आ कथाना नाम अंगे थोडोक सन्देह रहेतो हतो. तेथी ते अंगे तपास करतां खम्भातना श्रीशान्तिनाथ जैन ताडपत्रीय ज्ञानभण्डार-गत १८५ क्रमांकनी अनुमानतः १३मा सैकानी आ कथानी ताडप्रतमां नीचे मुजब पुष्पिका वांचवा मळी -
'समाप्ता चेयमुपमितभवप्रपञ्चकथेति ।' आठमा प्रस्तावना अन्ते पण नीचे मुजब लखाण छे -
'इत्युपमितभवप्रपञ्चकथायां पूर्वसूचितमीलकवर्णनोऽष्टमः प्रस्तावः समाप्तः ॥'
__ भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट - पूना स्थित आ कथानी प्राचीन ताडपत्रनी फोटोकोपी पूज्य गणिवर्य श्रीवैराग्यरतिविजयजी म.ना सहकारथी प्राप्त थई छे. आ प्रतमां पण पहेला प्रस्तावना अन्तभागमां स्वयं श्रीसिद्धर्षिगणिजे जणाव्युं छे के -
'तदिदमवधार्याऽनेन जीवेनेयमुपमितभवप्रपञ्चा नाम कथा यथार्थाभिधाना।'
वळी कथानुं आ नाम स्वीकारीओ तो 'उपमितो भवप्रपञ्चो यस्यां सा उपमितभवप्रपञ्चा कथा' अम साक्षात् समानाधिकरण बहुव्रीहि समास समजी शकाय छे ते पण ध्यानपात्र मुद्दो छे. स्वयं श्रीसिद्धर्षिगणिजे 'कथाशरीरमेतस्या नाम्नेव प्रतिपादितम् । भवप्रपञ्चो व्याजेन यतोऽस्यामुपमीयते ॥' अम कहीने आवा प्रकारना समासविग्रहनु ज सूचन कयुं छे.
___ वळी, 'श्रीसिद्धर्षि' ओ पुस्तकमां श्रीमोतीचंद गिरधरलाल कापडिया उपमितिभवप्रपञ्चाकथा ना नामकरण सन्दर्भे नीचे मुजब जणाव्युं छे -
"उपमिति शब्द लईओ तो समास वधारे सारी रीते छूटी शके छे... उपमित कृदन्त छे अने उपमिति नाम छे. आ कारणे अने क्वचित् अवो पाठ