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अनुसन्धान-७३
जिनकी रति अशेश, पसरी देश विदेश,
आज हों आवई रे सुर सरिखा सवि भेटवा जी... (१२) पूजई मनि रंगरोल, पासही घृतघोल,
आज हो पामई रे कोडि गमे सुखसंपदा जी... (१३) ईम जे जिनगुण गाई, नवलि निधि ऋद्धि घरि थाई, आज हो वेगि रे शिव रमणी तस आदरई जी. (१४) मुनिवर वंदित पाय, श्रीलखिमीविजय उवझाय, आज हो तास पसाइ तिलक लहइ रमा जी... (१५) . इतिश्री घृतघोल पार्श्वजिन स्तवन (११) श्रीविजयप्रभसूरि स्वाध्याय सुणि बहिनी पीऊडो परदेशी
ओ देशी सुनि जीउरा ओक बात हमारी, तोहि दुनियां दिलमें प्यारी बे काल अनादि अनंत गमाया, तो भी छेहरा नाया बे... सु... (१)
दुनियां दार दुकांन बनाई, नहु जांनी भलीय बुराई बे,
तस बेदन सहनी जब आवई, तब फिरि पिछतावा पावइ बे... सु... (२)
घेरमेंर कछु करनी न कीनी, यौंही फेरी दीनी बे,
काहि जमवारा षौंनां याही, आगिं ठरनां नांहिं बे... सु... (३)
मात पिता सब सांईसनी जे, आप सवारथ भीजे बे,
अपने दुख परि कोहु न ज्योवई, काहि दिवाना होवइ बे... सु... (४) यो षिन ज यावइ सो फिरि नावइ, धरम करम मनहु थावइ बे, किस भांति भांते जिन चलनां, या षरमरनां पानां बे... पीछइ छाया आइउ जांनी, यमकि ओ सहि नांनी बे ताथें उपाया ज्युं त्युं करनां, जाथें भव जल तरनां बे... सु... (६) यांन सारी में सदगुरु पाया, श्रीविजयप्रभसूरीराया बे
सु... (५)
तिलक कहई याथें सुभ ध्यानिं सुख संपति बहु मानिं बे... सु... (७)
इति श्रीविजयप्रभसूरी स्वाध्यायः ॥
लिखितं गणि तिलकविजयेन विरचितं च ॥ शुभं भवतु ॥ छ ॥
C/o. अरिहंत, समृद्धि पासे, हाईवे, डीसा