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सप्टेम्बर - २०१७
रेटियावर्णन भास
- सं. उपा. भुवनचन्द्र
दुर्गापुर-नवावास(कच्छ)ना संघहस्तक हस्तलिखित ज्ञानभण्डारनी प्रत क्र. २८/२२६ना अंते 'रेंटियावर्णनभास' नामे एक रचना जोवा मळी, ते नोंधपात्र जणायाथी अहीं प्रस्तुत करी छे. रतनबाई नामे श्राविकाए सं. १६३५मां मेडतानगरीमा आनी रचना करी छे एवो उल्लेख आमां छे, पण ते शंकास्पद छे. भाषा ते समयनी नथी; गुजरातनी छे अने ते पण दोढ-सो बसो वर्ष पहेलानी छे.
जो के, रेंटिया विशे आमां जे कहेवायुं छे ते वास्तविक छे. रेंटियो गरीब परिवारोनो आधार बनतो ज हतो. घरे घरे रेंटिया-चरखा रहेता, गामेगाम वणकरोनी शाळो हती. गांधीजीए गामडाना अर्थतन्त्रमा रेंटियाने केन्द्रमा राख्यो हतो. प्रस्तुत रचनामां आ वात सुपेरे चित्रित थई छे - गांधीजीथी घणा समय पहेलां.
__ ग्रामस्वराज, स्वदेशी अने महिलाओना आर्थिक स्वावलम्बन क्षेत्रे कार्य करनारा समाजसेवकोने पण रस पडे एवी आ कृति छे. एक नारीना साहस, सूझ अने संस्कार, पण सुन्दर चित्रण आमां थयुं छे.
बाई रे अमनें रेंटीयो वालो, रेटीयो घरनो मंडाण जो, परणी त्रीया छोडीने चाल्यो, गयो परदेशे कंत जो... बाई० १ बारे बरसे परण्यो आव्यो, दोढ त्रांबीयो लायो रे, गंगा माहें नावा पेंठो, देढ त्रांबीयो पाड्यो रे... बाई० २ माय ताय ने ससरे सासु, अमने कीधां अलगां रे, दुख वीसारण रेंटीओ धार्यो, जेहने जइनें वलगां रे... बाई० ३ देणु उतार्यु सारु पिउनु, व्याजे रुपिया वाधे रे, सुण चितारण [?] रुपीयो रुडो, पुन्ये कंत ए लाधो रे... बाई० ४ देरांणी-जेठाणी आवे, बोले मीठी वाणी रे, रेंटीया ना प्रसादथी तो, बीजी आंणे पाणी रे... बाई० ५ रेंटीया ना परसादथी तो, कोडी काम में कीधा रे, दान दीधो अमे अती घणो तें, महीयलमां जस लीधो रे... बाई०६