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________________ सप्टेम्बर - २०१७ २७ एक पुरुष छइ सहिजई सुंदर, वर्णइ श्वेत कहाइ, नारि मनोहर साथइ लीधी, कहयइ विरहउ न थाइ..... १ विदुर विचारज्यो हो, एहनउ अरथ कहउ लहि भाव, अठसठि छोरु तेहना हुआ, अधि न भेटी भाव..... २ नरि नारी सउं छेहडा बंध्या, कहियइ बालकुआरि, तिणि नारी ते पुरुष न दीठउ, पुरुषि न दीठी नारि..... ३ ए बेवइ ब्रह्मा नीपाया, जोवउ जगनी रीत, तेहनइ बेटइ ब्रह्मा जायउ, बेटि मधि गावइ गीत..... ४ जे नरनारी एहनइ वंचइ, ते पामइ शिवराज, वरस पंचकी अवधि कही, अथवा कहिज्यो आज..... ५ उत्तर : कागल, शाही, नवकारना ६८ अक्षर, चूलिकाना ३३ अक्षर. कागल-शाहीनो बेटो अक्षर, तेणे ब्रह्माने-अर्थने जन्म आप्यो, बेटी सरस्वती। 03 مر به नारि नवरंगी एक छइ, पूरी न्यानि विन्यानि रे, कला चउसठि भरी पदमिनी, नहीं एकणि मानि रे. पंडित ! पदमिनी कवण ते, जोउ निरखीय नेत्रि रे, देशि-विदेशिइं जाणीइ, वसइ भल भलइ खेत्रि रे... सीखइ तेहथी सवि कला, न जाणइ कांइ आप रे, नवि जणी परणीय पुण नही, न लागइ पुण्य पाप रे..... २ अंखि आंजी रही गोरडी, देखइ नहीय लगार रे, पुण नवि आंधी सो कहइ, पहिरइ वस्त्र शृंगार रे..... ३ पूठि पूरी बिहुं पखी भली, पुण पे...[?][पंखी] न कहाइ रे, नीर न पीअइ नवि त्रिसी, कइयइं अन्न न खाइ रे.... ४ टीली टबके चांदलो, सोहइ अति घण अंगि रे, नारी रुडी परखी करी, ब्रह्म कहइ जोओ रंगि रे..... ५ उत्तर : पोथी
SR No.520574
Book TitleAnusandhan 2017 11 SrNo 73
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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