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ब्रह्म रचित हरियालीओ
उपा. भुवनचन्द्र
हस्तप्रतोना भण्डारोमां 'प्रकीर्ण पत्रो' के 'फुटकर पानां' अथवा 'स्फुट पत्र' तरीके नोंधातां लखेलां छूटां पत्रोमां विविध प्रकारनी कृतिओ संगृहीत होय छे. विविध माहिती, दूहा, छन्द, पद, गीत, सुभाषित, समस्या, गूढा अने प्रहेलिका जेवी सामग्री आवां छूटां पानाओमां ज प्रायः मळती होय छे. उच्च कोटिनां स्तोत्र के काव्य आवा पत्रोमा जोवा मळे ! क्यारेक मोटी प्रतनां पत्रो विखूटां पडीने आवा प्रकीर्ण पत्रोनां ढगलामां दटायेलां पड्यां होय छे. आम, प्रकीर्ण- फुटकर पत्रोनां बण्डलो हस्तलिखित साहित्यना एक महत्त्वना स्रोतनुं स्थान धरावे छे. एक नानकड हस्तलिखित कागळना टूकडाने पण साचवी राखवानी पूर्वजोनी आ परम्परा / परिपाटीना कारणे ज्ञाननो वारसो सचवाई रह्यो छे.
अनुसन्धान-७३
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नागोरी वड तपगच्छना श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिजीना शिष्य विनयदेवसूरिए 'ब्रह्म' उपनाम धारण करेलुं; ब्रह्मर्षि, ब्रह्म, ब्रह्मो एवा नामे तेमणे संख्याबन्ध कृतिओ रची छे. आ विद्वान कविए धर्मचर्चा उपरान्त हरियाली जेवी रचनाओ पण करी छे ए जाणीने आश्चर्य थाय ! आ कविनी हरियालीओ प्रकीर्ण पत्रोमांथी मळी आवी, अहीं संकलित करीने, सम्भावित उकेल साथै प्रस्तुत करी छे.
परिहरी पाप पोता तणूं, पूजउ प्रहसमइ पाय रे, वीस नयण दस वयणडां, दीसइ जासु बे पाय रे...... देव ते परखउ पंडिता, जे द्यइ मुगतिनूं राज रे, भगतनी भीड भंजइ सदा, सारइ वंछित काज रे...... दोइ कर उगणीस जीभडी, दोइ जीवना नाम रे, एक सेवक इक राजीयउ, वसइ एकणि ठामि रे...... अंग बे अंजन पुंजला, गुणि ऊजला दोइ रे, देव ते सेवतां ब्रह्म कहइ, सुख अविचल होइ रे...... ४
उत्तर : नव फणा युक्त धरणेन्द्र अने पार्श्वनाथ भगवान