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अनुसन्धान-७२
हरियाली -
एक नरई बहु पुरुष झालिनइं नारि एक निपाइ हाथ पाय नवि दीसई कहिइं, मा विना बेटी जाई
चतुर नर, ते कुण कहिइं नारी... १ चीर-चुनडी-चरणा-चोली नवि पहरई ते सालु, छयल पुरुष देखीनई मोहई, एहवि तेह रूपालू... च० २ अपासिरई नवि आवई कहीइं, देहेरई जाए हरखइ, नरनारिस्युं रंगई रमती, सहूइ साथई सरखी... कंठइ वलगी वाहली लागई, साहिबनई रीझावइ, ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ...
च० ४ एक दिवस, यौवन तेहर्नु, . पछई नावइं काम, पांच अक्षर 3 स्युंदर तेहना, तेहमां तेहनुं नाम. च० ५ कान्तिविजय कवि इणि परिइं बोलई, सुणज्यो नर नई नारी, ए हरियालीनो अरथ कहै ते, साहिबनि बलिहारी... च० ६
(फूलनी माला)
हाथी दंत समी एक नारि नामाक्षर तिस दोइ, दूध-धारि सरिखउ सुत जनमइ मान भखइ सुत सोइ रे... १ बूजउ पंडित ए हरीआली जोइज्यो हृदइ निहाली, करिज्यो ऊतर पाछउ बोली, सुधउ अरथ संभाली रे... बू० २ नरनारी संयोगि जाइ, देह विवर्जित बाला, मुख पाखइ पंच साखि, विणसे उतपति काला रे. श्वेतवरणस्यइ नयणे दीठउ, गंध विवर्जित फूल, न चढइ देवि न देख्युं भावै, किछुय न पावै मूल रे. बू० उत्तमि बापइ बेटउ जायउ, बेटइ बाप लजायउ, बेटा के गुण लेखि लिखायो, नारी नयण सुहायो रे. बू० ५