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जून - २०१७
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पांचे वरणि नवि पंचाली, नागिणि नहि दोइ जिह्वा, श्याम वदन मंजारि न होवै, लिहि पंडित निशदीहा. अधिक कषाय धरइ उपजतउ, खाटउ यौवन वेस्यइ, वडपण हुइ विशेषइ मीठउ, दीसै देस विदेस्यइ रे. बू० ७ गुणवंत मनि गरब न आणै, छेडयउ छेह न दाखै,
सब जग की जे लज्जा राखै, मुनि शिवचंद इम भाखइ रे.बू० ८ (१. पूणी, ३. चुटकी, ४. ?, ५. काजल, ६. लेखण, ७. आंबो, ९. वस्त्र)
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बाई रे में कौतिक दिलु, काणो डोलो आंजियो ए... बाई० हाथ विछुटो हाथियो ए...
बोडि[डी] माथें राखडी ए.., तरस्यो पाणी नवि पीयइ ए... फलिओ आंबो कापियो ए... सूयरें हाथी मारीओ ए... बेटे बाप विणासिओ ए... विस पीधे हरखीत हुओ ए... विण पुरुष रमणी रमे ए... एक नारी परणे घणा ए... गुरुड नाम विष धारीओ ए... गयवर सीह सामो ग[च]ल्यो ए... सायर माछा सवि गल्या ए... एक जणे पांच विणासीया ए... माय मुइ रोयिं नहि ए... वयरी घर मांहि रमे ए... नारीइ प्रीतम बांधिओ ए... बांध्यो चोर चोरि करे ए... सुख विण सुखीउ थयो ए... पंथ लही भूलो फरें ए...
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