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________________ ओक्टोबर-२०१६ २७५ ढांकीसाहेब : संस्कृति सौरभनु मानवरूप - कनुभाई जानी प्रति, परम श्रद्धेय आदरणीय महाराज साहेब, क. जानीना पायलागण ! कांईक अपराधभाव साथे लखुं छु ! 'क्षन्तव्यो मेऽपराधः' मनमा हतुं के पहोंची वळीश - लेखमां; पण आंख-कान बेय ज्यां खोटकायां होय त्यां मारु क्यां चाले ?! बे काच उपराउपर मूकीने टगुमगु अक्षरो वीणतां-वीणतां वांचवें पडे छे; ने कोई वांचे ते सांभळवा-ये बंध ! खेर ! आ स्थितिमां पण हुं मारी रीते परम-विद्वान-सन्त कोटिना-ने अंजलि आपवा धारूं छु - ईश्वरनी कृपा हशे तो ! डो. ढांकीसाहेब जुदी ज माटीना विद्वान हता. साचा अर्थमां संशोधक; पण अटला ज सरळ अने संवेदनशील ! फूलोने माटे ! ओर्किड विषे केवु सरस लख्युं छे - जाणे कोई मित्रने याद करता होय अq ! ने पेला रिसायेला मोरने केम मनाववो अय ते ! शास्त्रनुं जीवन एमणे जाण्युं छे, अटलुं ज जीवन, शास्त्र पण ! छतां क्यांय देखाडो नहीं ! नानालाल कहे छे ते सो वसा आमने लागु पडे : 'पुण्यात्मानां ऊंडाणो तो आभथी ये अगाध छे.' कलाना मर्मज्ञ - चित्र, शिल्प ने संगीतना तो खास. आपणी संस्कृतिनी अनेकदेशीय बाजुओनी अनेकपक्षी दृष्टि एटले ढांकीसाहेब - संस्कृति सौरभनु मानवरूप ! अमे सारा मित्रो हता. में घणाने जोया; आ तो अजब ! फरीथी लेख न लखी शकवा बदल क्षमा चाहतो आपना चरणे नमुं छु. 'वेणु', ६, घोषा सोसायटी, थलतेज रोड, अमदावाद-५४
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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