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ओक्टोबर-२०१६
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धीमतां' श्लोक-पंक्ति अनुसार विनोदिका अने विनोदवाटिकामां अनुभवी शकाय छे.
अहीं प्रथमनां सात लखाणो ढांकीसाहेबना बहिर विश्वने खोली आपतां होय तेवू लागे छे. ___'पुष्प साथे वात करवानो समय रह्यो नहीं 'मां कविनो वलोपात छे. वलोपातना विकल्पे आनन्दनी ल्हाणी. 'ओर्किडनुं सख्य' द्वारा ढांकीसाहेब एक अलग संवेदनविश्वमां भावकने प्रवेश करावे छे.
तो 'मृगपक्षी अने मत्स्यनुं सख्य' भातीगळ विश्व खोली आपे छे. श्वान, वानर, मार्जार, गाय उपरान्त पंखीमां कबूतर, काबर, कुकडा, कागडा, बगला, मोर, ढेल, कलकलिया, देवचकली, हुदहुद, सुरखाब, होलां, दरजीडा, पोपट, जलनी विविध माछलीओ, शोभाना छोडवानी वातो आ लखाणमां छे. जाणे उमाशंकर जोशीनी पंक्ति...."विशाळे जग विस्तारे नथी एक ज मानवी, पशु छे, पंखी छे, वनस्पति छे..."ने चरित्रार्थ करी आपे छे. अहीं प्राणी के पक्षीविषयक ज्ञान होवा छतां शास्त्रीय नथी बनता. कलाप्रपंच रचे छे. कला छे, चाहवानी कला. मनुष्य जीव हेतुवाळु प्राणी छे. ज्यारे प्रकृति साथे तादात्म्य धरावती आ सृष्टि निर्हेतुक स्नेहने प्रगट करे छे. तमाम मूल्योमा निर्हेतुक स्नेहनुं मूल्य जगतभरने विदित छे. स्वीकारायुं छे. अहीं मूल्यस्थापन छे. बीजुं कशुं न थाय तो पण आ सृष्टिनो संग आपणने थोडाक ऋजु बनवामां मददरूप थाय छे. ढांकीसाहेबना ए रीते ऋणी रहे|. ___'मेलोडी की मोत' ए आन्तर वैभव, संगीत, गायन, वादननी झलक छे. 'तैलप के राज में गाना नहीं बजाना नहीं' एम कोर्पोरेट जगत द्वारा नियंत्रित, अर्थव्यवस्था, राजव्यवस्था, समाज-कुटुम्बव्यवस्थाना भोगवाद सामेनो उपाय आपता होय तेम पृ. ९७ पर नोंधे छे - 'जीवनमां संगीतना माध्यम द्वारा प्रशान्तता अने उर्ध्वगामी आनन्दनो अनुभव करवा होय तो 'मेलोडी'नो स्वीकार अने ए राह प्रति वळवा सिवाय कोई उपाय नथी.'
'शास्त्रीय संगीतसृष्टिमां प्रवेश' लेखमां मधुसूदन ढांकी साधक तरीके स्थाननी शोधमां होय तेवू दर्शावे छे तेम लागे. पण आ लखनार जेवाने ते सिद्ध