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अनुसन्धान-७१
लागे छे. कारण मध्यरात्रिना एकला द्वारा गवातो मालकोस. ‘ए सलूणी संगीत मय सांजे' जीवननी पण सलूणी क्षणो छे. ___ 'बडी मोती'ने धर्मनिष्ठ गायिका कहेवा पाछळ ढांकीसाहेब जीवनधर्मकलाधर्म पूरता सीमित नथी रहेता, कालधर्मने पण उजागर करे छे.
'कलाओनी जुगलबंधी' ए लखाणने खोली आपवा माटे सक्षम कलाकोविदनी आवश्यकता रहे. हेगले गणावेल उपादान - आधारे कला मीमांसकोने भारतीय कलाविभाग कदाच पकडमां न पण आवे तेवू बने. कारण केटलीक पश्चिमनी कलाओनं ज्यां चरम होय छे त्यांथी भारतीय कलानी शरूआत थती लागे. दा.त. संगीत.
_ 'ताम्रशासन'ने काल्पनिका प्रकारथी ओळखावे छे. परन्तु, गुजराती भाषा साहित्यना भावकोए तेने वार्ता तरीके मान्य करी छे. अहीं वार्ताकार ढांकीने पुरातत्वविद ढांकी पुष्कळ मदद करे छे. आ लखाणना प्रतिभाव गुजरातमां उमळकाथी आव्या छे. विस्तारभये पुनः चर्वणा नथी करवी. अन्ते 'कविता कीटकत्रयी' पतंगियुं, फुदुं, आगियो, घणुं भाष्य खमी शकवानी क्षमता विषयपसंदगीमां छे. रस, रंग, अने सुगन्ध, जल, वायु अने तेज वच्चे पांगरता जीवन, सार्थकता, मृत्युनी नियतिनुं कलारूप आपवानो प्रयत्न. ए प्रकृतिविदनो टिक तुलिंका पाटव छे.
खेर, आ बधी बाबतो विशे परेश नायक अने एम.आर. दवे साहेबे अनुक्रमे पूर्वालोकन अने विहंगावलोकन लख्युं छे. अमासना तारा साथे शीर्षक साम्य एस्ट्रोनोमीने बदले एस्ट्रोलोजीनी सहाय लीधार्नु लागे. जो के शनि पुरातन अने जूना संशोधननो कारक न मानीए तो पण तेना वलयनी शुभतानी ओळख अपाय छे, ते मुजब Like A Plantcnith Sound Roots अहीं लखाणोना विषयमां चरितार्थ थाय छे. बीजुं लाभशंकर पुरोहित साहेब साथेनी वातमां तेमणे ध्यान दोरेल के ढांकीसाहेब भाषामां नवा शब्द प्रयोजवानी क्षमता धरावे छे. जे झूझ सर्जकमां होय छे. वांचता लाग्युं के परिभाषा माटे पण शब्दो दोडी आवे छे. स्मृतिसंचयिकाना सर्जकनो आन्तर वैभव माणवा एटलुं कही शकाय के भावना सन्दर्भ जगतनुं फलक जेटलुं विशाळ तेटलो विशेष आनंद.
C/o. न्यायालय पथ,