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अनुसन्धान- ७१
नहि पण शास्त्रीयसंगीत सांभळवानो 'खो' वाळी दीधो छे - बहु सांभळ्युं छे, हजुय सांभळं छं. ‘सप्तक' हाथमां आव्युं के एक बेठके अकरांतियानी जेम वांची गयो. आपणे तो लाधी पोळ अने थयुं झाकमझोळ ! बस ए प्रसंगथी हुं 'सप्तक'ना लेख पर मुग्ध छं.
भारतीय संगीतशास्त्र बहु खेडायेलुं छे. संगीतना स्वरूपने अने शास्त्रने शतकोथी एना विद्वान पण्डितोए आलेख्या छे, पण ए तो जेने शीखवुं होय एने मार्ग दर्शावे छे. आपणे मात्र श्रवणशूरा ! एटले संगीत विषयक कशुं वृत्तान्त के इतिहास तेमज गायकीनी विविध परम्पराओ के संगीतना स्मरणीय जलसाओ विशे के समर्थ गायक-वादको विशे जाणवा मळे तो भयो भयो !
मु. ढांकीसाहेबे 'सप्तक'ना सात लेखोमां शास्त्रीयसंगीतनुं अत्यन्त रोमांचक विश्व उद्घाटित करी आप्युं छे. शिरीषभाई कहे छे एम आ लेखोमां ढांकीसाहेबनी सुज्ञ भावक व्यक्तिता अने विद्वत्ता प्रभावकपणे प्रगट्या छे. तो पू. भायाणीसाहेब एमने शैलीलीला अने शैलीविलासना स्वामी गणावे छे. डो. हसु याज्ञिक कहे छे तेम 'आ सात लेखो' अंधारी दिशामां पडतां प्रथम सूर्यकिरण जेवा छे.' अने ए हकीकत छे के गुजरातमां अने गुजराती भाषामां शास्त्रीयसंगीत जाणनारा अने एना विशे लखनारा विरल ज छे. डो. हसुभाई जेवा तज्ज्ञोना विरल अपवाद बाद करो तो पछी ए शोधवा माटे फांफां मारवा पडे. आ तबक्के 'सप्तक' ना सात सोपान संगीतना क्षेत्रमां सीमाचिह्नरूप बनी जाय छे.
वळी हसुभाई साथै सम्मत थवुं पडे के 'शोधपत्र कोने कहेवाय एनो आदर्श नमूनो जोवो होय तो ते ढांकीसाहेबना आ निबन्धमां मळशे.' एटले शास्त्रीयता अने रसिकता समान्तरे अहीं सांपडे छे. लेखके स्वयं लख्युं छे के 'संगीतमां जागेला उत्कृष्ट रस माटेनी तालावेलीना परिपाकरूपे आ लेखो लखाया छे.'
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जे कलारसिक पण होय अने कलाना पारगामी द्रष्टा पण होय एवा सव्यसाची सिद्धहस्त महारथी सामे विनम्रताथी, बद्धहस्त मौन बनीने ऊभा रहेवुं जमुनासिब गणाय. एमना विशे कशो अभिप्राय आपवानी तो वात ज क्यां ?