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ओक्टोबर-२०१६
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आम छतां स्नेह अने समादेश थोड़े चापल्य करवा हिम्मत आपे छे, ए प्रमाणे 'सप्तक'ना लेखोमां शैलीलीला उपरान्त विपुल सामग्री सांपडे छे. 'आगियो अने स्वर्णभ्रमर' एवा रूपकात्मक शीर्षकयुक्त प्रथम लेख मने सौथी विशेष स्पर्शी गयो छे. आ एक लेख विशे मारी घणीबधी मर्यादाओ साथे मारो आनन्द व्यक्त करीश. आ लेख सर्वथा मौलिक अने अनन्य प्रतिभापूत छे, पण मने विशेष स्पर्शी जवानुं एक अंगत कारण पण छे. मारी पांच-छ दायकानी श्रवणयात्रामां खूब सांभळ्युं छे. हिन्दुस्तानी संगीतनी साथोसाथ कर्णाटक संगीत - वर्षो सुधी आकाशवाणी संगीत-संमेलनोमां बन्ने धाराओ समान्तरे वहेती - सांभळवा निष्ठापूर्वक प्रयास को हतो. दक्षिणना धुरीण संगीतकारोने कुतूहलथी, भावपूर्वक, धैर्य सह माणवा - रसानन्द लेवा मथ्यो हतो. परन्तु हरेक प्रयत्ने हिन्दुस्तानी संगीतनी सरखामणीए कशुंक ऊणुं लाग्या करतुं हतुं. त्यारे थतुं के कदाच आपणी क्षमता ओछी होय के आपणा कान टेवायेल न होय एटले आम थतुं हशे.
__ पण, 'आगियो ने स्वर्णभ्रमर' माथी सुपेरे पसार थया पछी ए 'लज्जाशल्य' नीकळी गयुं !
भायाणीसाहेब जेने 'जनोईवढ घा' कहे छे एवा निर्भीक स्पष्ट अभिप्राय द्वारा बन्ने संगीत परम्परानुं विशद अवलोकन - मूल्यांकन कर्यु छे...
ढांकीसाहेबनुं विधान छे के दक्षिणमां सुस्वर उपर ध्यान देवातुं नथी अने स्वरना कम्पनी अतिशयताथी गान- स्वरूप स्थिर थतुं नथी. उत्तर हिन्दुस्तानी संगीतमां विलम्बित आलापनो मोटो महिमा तेओ बतावे छे त्यां पण ऊंची कोटिना गायकोने ज ए सिद्ध होय छे एवो स्पष्ट अभिप्राय पण आपे छे. ____ एक महत्त्व- मौलिक निरीक्षण आपता तेओ कहे छे के उत्तर हिन्दुस्तानी संगीते काळक्रमे उत्क्रान्ति स्वीकारी छे अने समयानुसारी परिवर्तनो कर्यां छे, एम खयाल गायकीनी शैलीए प्राचीन परम्पराना भारेखमपणाने छोडी दईने माधुर्यलक्षी शैली अपनावी छे, जे दक्षिणमां पुराणप्रीतिने कारणे बन्युं नथी. ___बीजूं, उत्तर हिन्दुस्तानी संगीतमा 'सम'- सौन्दर्य श्रोताओने डोलावे छे एवं द्राविडी संगीतमां नथी एवं साधिकार प्रतिपादन करी आपे छे.