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ओक्टोबर-२०१६
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डो. मधुसूदन ढांकी : जेटला जोया - जाण्या
___ - छेलभाई व्यास
गया महिने एक समर्थ विद्वत्पुरुषना निधनना समाचार मळ्या त्यारे एक दुःखद खटको लागेलो, अने एमना विशे केटलीक स्मृतिओ ताजी थई हती. एक-बे प्रसंगे ढांकीसाहेबनां दर्शन-श्रवणनो लाभ मळ्यो छे. प्रथम सुरत मुकामे पू. महाराज साहेबे योजेल आनन्दघन-परिसंवादमां अने त्यार पछी अमदावादमां हठीसिंह देरासर परिसमां योजायेल विद्वत्सन्मान समारम्भमां. ए अगाउ ढांकीसाहेब विशे एमना लेखननिधिमांथी थोडु मेळवेलु. एमना 'कुमार'ना लेखो रसपूर्वक वांचेला. अने सौथी विशेष तो एमनी अद्भुतरसनी बहुचर्चित वार्ता - 'ताम्रशासन'-ए जब्बर असर करेली.
आटलुक जाणता होईए अने एमना समा दिग्गज विद्वान विशे लखवू ए तो अनधिकार चेष्टा ज गणाय. क्यां पुराविद्याना अने भारतीय सौन्दर्यशास्त्रना पारंगत महारथी अने क्या आपणा राम ! ।
मारी साहित्य अने कला प्रत्येनी भक्ति प्रधानतः दर्शन अने श्रवणनी. विद्वानोनी सभामां जवानो प्रसंग मळे त्यारे लगभग आगळ ज बेसवानो आग्रह. विद्यापुरुषोनुं सान्निध्य अने एमनो दृष्टिप्रसाद आपणो प्रथम शोख.
मु. ढांकीसाहेबने सुरत परिसंवादमां स्टेज पर प्रथमवार जोया- सांभळ्या. गम्भीर व्यक्तित्व, थोडा अन्तर्मुख, ऊंडो, धीमो, बहु मधुर नहि, जरा खोखरो लागे एवो अवाज, दूबळी काया, ऊंडी तीक्ष्ण आंखो, प्रथम दृष्टिए साधारण लागतुं व्यक्तित्व. पण ज्यारे एमनो ज्ञानराशि निहाळीए, पुराविद्याना क्षेत्रमा एमणे करेला गंजावर कामने जोईए त्यारे आ बाह्य देखाती सामान्यता क्यांक सरी जाय, एक विराट विद्यावारिधिना दर्शन थाय.
सुरत योजायेल आनन्दघन-परिसंवाद वखते मित्र जयदेव शुक्ले मने ढांकीसाहेबनो संगीत विषयक लेखोनो संचय 'सप्तक' हाथोहाथ आप्यो. जयदेव साथेनी मारी मैत्री, माध्यम मुख्यतः संगीत. ए संगीतनो रसिक ज्ञाता छे तो संगीत मारो पण प्रथम प्रेम छे. आ एक चसको छे. पद्धतिसर स्वर-ताल ज्ञान