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अनुसन्धान-७१
कोईने समजाय अवा शब्दो सांभळीने एक व्यक्तिनुं मस्तक धुणी रह्यं हतुं; ने ते हता आ.वि. शीलचन्द्रसूरि. मने अम थयु के अवो तो कयो स्नेहसम्बन्ध आ बे महात्माओ वच्चे बंधायो छे के ज्यां शब्दो गौण बनी गया छे. मने याद आव्या करती हती प्रह्लाद पारेखनी काव्यपङ्कितओ :
"पछी तो ना वातो, प्रियअधर जे कंप ऊठतो, ध्वनि तेनो आवी, मुज हृदय मांही शमी जतो."
ढांकीसाहेबे करेला सूचनने आंख-माथा पर चडावी ज्यारे आचार्य भगवन्ते पोतानुं प्रवचन आरम्भ्युं त्यारे ढांकीसाहेब शुं बोल्या हता ते समजायु. हुं तो बे साधुजनो वच्चेना आ नीरव सम्वादथी अवो तो अवाक् थई गयो के घडीभर तो शुं बोलवू अ याद ज न आव्युं. 'ढांकीसाहेबे सूचवेलु काम अमारा साधुओ करशे' अम कहेता आचार्य भगवन्तने मन ढांकीसाहेबनां वचनो केटलां बहुमूल्य हतां ते बरोबर प्रमाणी शकेलो.
केटलाक लोको, होवू ज बहु मोटी धरपत होय छे. ढांकीसाहेबने भले बहु मळवार्नु न थयुं होय, बहु वांच्या न होय, बहु सांभळ्या न होय, तेम छतां आवा महान लोकोना समकालीन होवू अ पण बहु मोटी उपलब्धि छे. ढांकीसाहेबर्नु जीवन तो ज्ञानगंगाना अखूट प्रवाहनी जेम वहेतुं रह्यं छे. मारा भाग्ये तो तेमांथी अंजलि जेटलां ज वारि आव्यां छे, पण तेने हुं मारी मोंघी मिरात मार्नु छु. अमना सादा-सरळ व्यक्तित्वथी हुं भारोभार अंजायो छु. मने स्पर्शी गई छे तेमनी निखालसता, सरळता, नम्रता, सादगी तथा तेमनुं अकिंचनपणुं. विद्या अने अध्यात्म बन्नेनो सुयोग तेमनामां थयेलो जोई शक्यो छु, ने तेथी ज उत्तरोत्तर तमना भणी ढळतो गयो छु. तेमना व्यक्तित्वने में जे रीते जोयु-प्रमाण्युं छे, तेने वर्णववा गीता परीखनी आ पंक्ति उपकारक थई पडे तेम छ :
"सूकां पर्णो वन गजवतां, शान्त लीलां सदाये."
गवर्मेन्ट आर्ट्स अॅन्ड कोमर्स कोलेज
आइ.टी.आइ.केम्पस, रापर-कच्छ