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ओक्टोबर-२०१६
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एमणे कहेलुं : 'कर्णाटकीना छांट-प्रभाव वगर मालकौंस जेवा गमक-मींडयुक्त रागनो प्राण ज रुंधाय ! तमारी समज अने तैयारी सारां छे.' हुं पोरसायो अम कहुं के तृप्त थयो अम ! कोई पण कलाप्रस्तुतिमां 'ओप्रिसिओशन' प्रोत्साहक बने छे, परन्तु से आपनार मात्र गुणीजन ज नहीं अधिकारी गुणीजन होय त्यारे तो कोई जुदी ज अनुभूति थाय छे. अमारो मैत्रीसम्बन्ध - मैत्रीसम्बन्ध कहुं छु केम के वैमत्यनी पारस्परिक छूट लई शकता - गाढ बनतो गयो. हवे साहित्य अने संशोधन- स्थान संगीते लीधुं. ___संगीतनी ओमनी परख ऊंडी अने सर्वाश्लेषी. कर्णाटक संगीतनी पूरी ने साची रियाझी समज ! आथी अमारी चर्चा जामे. भायाणीसाहेब पण संगीतना मात्र रसिक के ज्ञाता ज नहीं परन्तु अय अल्पकालीन रियाझी. बहु ओछा जाणता हशे के भायाणीसाहेबे पण दिलरुबा शीखवानुं शरु करेलुं अने यमनरागना छोटा-खयाल 'अरी ओ...री आली, पिया बिन' वगाडवा सुधी पहोंचेला. आ अटला माटे याद आवे छे गुजरातना संगीतज्ञ संशोधको-म्यूझिकोलोजीस्ट ओफ गजरात विशे लखतां विशेष वीगते मात्र प्रो. आर. सी. महेता अने डॉ. मधुसूदन ढांकी विशे ज लखेलुं. मारी ओ टेव के ज्यारे पण कशुंक संशोधनरूपे, शोधपत्र निमित्ते लखाय त्यारे अनुं प्रथम वाचन भायाणीसाहेब सामे थाय. चर्चा थाय, सुधारा-वधारा थाय. आ लेख अंगे ढांकीसाहेबे बीजा त्रण चार प्रचलित नामो लई पूछ्युं : 'आनो समावेश केम रही गयो छे ?' में कडं, 'रही गयो नथी, में सहेतुक को नथी. संगीतज्ञ के संगीतविवेचक (हकीकते जे आस्वादक वा टीकाकार होय छे) वगेरेथी 'म्यूझिकोलोजीस्ट' संगीत-संशोधक जुदो छे. संगीतनी परिभाषामां 'रियाझी' (पोते रियाझ करी जाते अजमावनारो, सक्रिय ओवो प्र-योग करी चूकेलो) होवो जरुरी छे. साहित्यविवेचक पोते सर्जक न होय, जाते ज काव्य-वार्तादि सर्जन अजमावी चूक्यो न होय तो चाले. संगीतमां नहीं. मजाकमां कहेवातुं आव्युं छे के सर्जनमां निष्फळ जनारो विवेचन करे छे. संगीतमां आवें बने, परन्तु अमां आंशिक सत्य छे. हकीकत तो ओ छे के साहित्य होय, संगीत होय के बीजी कोई कला होय, अनी सक्रिय अजमायेशमां निष्फळता, कलाप्रस्तुति तजीने ओ विशे संशोधन-विवेचन करवानुं तात्त्विक कारण ओ छे अनुं खुदनुं ज आवा कलापदार्थ- धोरण अटलुं ऊंचं होय छे के