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ओक्टोबर-२०१६
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जोडी, दूर दूरनी कोई घटनानो आकार ऊपसाववो होय त्यारे स्मृति चावीरूप भाग भजवे. ढांकीसाहेबनी स्मृति 'प्रत्युपस्थित' हती; काम पड्ये हाजर थई जती. नूतन प्राप्त विषय साथे सम्बन्ध धरावती विगतो, स्मृतिना भण्डारमाथी एक पछी एक उपस्थित करता ढांकीसाहेबने जोवा मे एक ल्हावो हतो.
इतिहास - पुरातत्त्व - शिल्प ओ ढांकीसाहेबनां मुख्य कार्यक्षेत्र हतां. जैन इतिहास अने जैन स्थापत्यनो तेमनो अभ्यास विशिष्ट हतो. साहित्य पण तेमना रसनो विषय हतो. मांदगीना बिछानेथी पण तेओ एक महाकाय ग्रन्थ तैयार करी रह्या हता, जे पूर्ण थवाना आरे अने प्रकाशित थवाना किनारे हतो, ते प्रगट थाय ते पहेला तेमणे विदाय लीधी. जैन परम्पराना स्तोत्रसाहित्यना विविध तबक्काओनो जे सर्वाङ्गीण ग्रन्थ 'निर्ग्रन्थस्तोत्र मणिमञ्जूषा' नामे हवे प्रकाश्य छे. श्री जितेन्द्र बी. शाह अना सहसम्पादक छे. तेओ ओ ग्रन्थने शीघ्र प्रकाशमां लावशे ओवी अपेक्षा छे. ___ ढांकीसाहेबनी प्रतिभा सर्वदिग्गामिनी-अप्रतिहतगामिनी हती. वेधक विश्लेषण द्वारा तथ्यातथ्यनो निर्णय करवामां तेमनी सूक्ष्मग्राही दृष्टि केवी रीते काम करती तेनी साक्षी ढांकीसाहेबना सर्जनना एक एक पृष्ठ पर अङ्कित छे. 'तटस्थ, शुद्ध, तथ्यपरक अन्वेषक दृष्टि' - ओ तो तेमना व्यक्तित्वनो ज एक अंश बनी गयो हतो. कोई विधान- खण्डन करवानुं आवे त्यारे तेमनी कलम उग्र बनती, पण उद्दण्ड तो क्यारेय नहि. ___ग्रन्थगत उल्लेखो, शिलालेखो, ताम्रपत्रो, प्रतिमालेखो, सिक्का, शिल्प वगेरेना सन्दर्भो, कथा, रास, शिल्पो जेवा स्रोतोमांथी जडेली झीणी झीणी विगतोने जोडीने, सुग्रथित-ससूत्र निरूपण द्वारा निष्कर्ष सुधी पहोंचती तेमनी शैली विद्वानोने पण मुग्ध करनारी हती. तेमना शोधपत्रोमां पादनोंधो - Foot Notes प्रचुर प्रमाणमा रहेती. संशोधनकार्य करतां हाथ चडेल अनेक आनुषङ्गिक नोंधोथी आ टिप्पणो ठसोठस भरेलां रहेतां. आ सामग्री भविष्यना संशोधकने खप लागशे से माटे आवो आयास तेमणे करवानो राख्यो हतो.
आ मूर्धन्य विद्याव्यासगी विद्वानना बे ग्रन्थोनी समीक्षा लखवानी तक मने मळेली ओ वात आनन्द आपी जाय छे. ढांकीसाहेब लिखित बे महाकाय ग्रन्थो : 'निर्ग्रन्थ जैतिहासिक लेख समुच्चय' खण्ड १-२, तथा 'Studies in