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अनुसन्धान-७१
Nirgranth Art and Literature' - आ बे पुस्तकोनी 'अनुसन्धान' शोधपत्रिका माटे समीक्षा लखवानुं काम आ. श्रीशीलचन्द्रसूरिजीओ मने सोंप्यु. मे निमित्ते ढांकीसाहेबना कार्यने नजीकथी वांचवा-तपासवानो अवसर मळ्यो. आ वाचन वखते जाणे इतिहासना अगोचर प्रदेशमां पहोंची गया होईओ अवी लागणी में अनुभवी. आ अनुभूतिने समीक्षाना शीर्षकोमा में आ रीते व्यक्त करी हती : 'इतिहासना अज्ञात प्रदेशोमां स्वैरविहार' अने 'निर्ग्रन्थ परम्पराना अतीतनी शोधनो परिपाक'. यथामति-यथाशक्ति लखायेला ओ समीक्षा लेखो वांचीने ढांकीसाहेबे राजीपो व्यक्त को अने ऊमेयूँ : 'तमारी भाषा मने गमी छे. बह
ओछा साधुओ आवी शैलीमा लखे छे.' आजीवन विद्याव्यासङ्गने वरेला ओ विद्वद्वरेण्यना मुखे आ उद्गार सांभळी एक जुदो ज सन्तोष में अनुभव्यो.
ज्यारे ज्यारे फोन पर वात थती त्यारे त्यारे तेमनो एक आग्रह रहेतो : 'तमे अमदावाद आवो ! ढांकीसाहेबना ओ प्रेमाळ आग्रहने हुं सफळ करी शक्यो नहि ओनो रंज हमेशां रहेशे. सामी बाजुओ, सन्निष्ठ विद्योपासनाना साधक एक असाधारण प्रतिभाना दर्शन-समागमनुं सद्भाग्य साम्पड्युं हतुं अनी सुखद स्मृति मनने एक तृप्ति पण आपती ज रहेशे. ___ ढांकीसाहेबनी कक्षानुं शोधकार्य हवे थशे खरुं ? संशोधन तो थतुं ज रहेशे, पण संशोधनने पोतानी जातथी ये आगळ मूके मेवा - ढांकीसाहेब जेवा - संशोधको मळशे? न जाने.
जैन देरासर नानी खाखर-३७०४३५,
जि. कच्छ (गुजरात)