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________________ ओक्टोबर-२०१६ २०७ जो के अमना आ मानसन्माननी विगतो अमना मोंओ मने सांभळवा मळी न हती. स्वप्रसिद्धिनी वात करवी अमने गमती नथी, तेथी ज कदाच ओमनी आ विस्तृत गौरवप्रद कार्यसिद्धिनी खास नोंध लेवाई नथी. कोई परदेशीओ मधुसूदनभाईने पूछ्युं हतुं, 'तमारा देशमां कयो धर्म छे ?' एमणे का, 'अमारा देशमां भौतिकवाद धर्म छे, चार्वाक देव छे, दम्भ देवी छे. 'आजकाल शेतानी तीव्र लालसा लोकोनां मन पर सवार छे, एटले ज लोको सुखी नथी.' 'तमे साम्प्रत परिस्थितिथी आटला बधा निराश छो?' . 'हा, आज आपणी भारतीय परम्परा नष्ट थती जाय छे. बीजाने देखाडवाना मोहमां कलानुं गौरव अने लालित्य भूलातां जाय छे. आपणे आपणुं सत्त्व जाणतां नथी, सांस्कृतिक सभानता ओसरती जाय छे. 'बहारनी संस्कृतिना सम्पर्कनी असररूपे दरेक क्षेत्रे गतिनो वेग वधवानी साथे परिवर्तन पण झडपी आव्युं छे. बधुं तूटतुं जाय छे, तोडवू सहेलुं छे पण ओना स्थाने आपणे शुं पाम्या ? 'आधुनिक संगीत, नृत्य, वेशभूषा अटलां बदलायां छे के अमां कलाना मूळभूत अंशो, लय अने मधुरता पण नथी जळवायां. 'आ नवी ढबनां पोषाकमां स्त्री स्त्री नथी लागती, पुरुष पुरुष नथी लागतो.' 'आधुनिक जमानामां उपयोगिता अने सगवड, Functionalityने प्राधान्य अपाय छे ने !' में कडं - 'छतांय आपणी गुजराती ढबथी साडी पहेरवानी रीत, किनार पालव अने स्त्री ज्यारे माथे ओढे त्यारे केवी गरिमापूत लागे. तरुणीनुं लावण्य, पत्नीनी मर्यादा, गृहिणी गौरव, मानो महिमा - बधुंय प्रदर्शित थाय. अत्यारे तो पोशाक बदलायो, साथे चाल बदलाई, ओ नाजुकाई, सौन्दर्य अदृश्य थई गयुं.' मधुसूदनभाईनो आत्मा भारतीय छे. भारतीय संस्कार, प्रणालि, रीतरिवाजना प्रशंसक छे. कहे, 'आतिथ्यसत्कार केवी ऊंची भावना छे ! तद्दन
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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