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अनुसन्धान-७१
अजाण्या माणसने हेतथी बोलावो, भावथी जमाडो, केवो अनुपम भाव ! परदेशमा काम अने वस्तुनां मूल छे, आपणे त्यां माणसनां.' .. मधुसूदनभाईने कहेवतो प्रिय छे. वात वातमां कहेवत बोले. कहे, 'कहेवतो तो भाषानुं बळ छे, प्रसङ्गे प्रसङ्गने अनुरूप केटली कहेवतो छे. शब्दोनी पसन्दगी माटे ओ खूब चोक्कस छे.' कहे, 'अकबीजी भाषामाथी योग्य शब्दोर्नु आदानप्रदान थर्बु ज जोई, तो ज शब्दभंडोळ वधे. राष्ट्रभाषामां देशनी बधी बोलीओना शब्दो आववा जाई. हिन्दी संस्कृतमय नहीं पण हिन्दुस्तानी होवी जोईओ.'
अमने लयभङ्ग के बेडोळता बहु ज चे छे. कहे, 'जेम गेरकायदेसर बांधकाम तोडी पडाय छे अम आडेधडे खेंचे राखेलां वरवां बांधकाम तोडी पाडवां जोईओ.
'सौन्दर्यनां सनातन घटको ना भूलावा जोईजे. प्राचीन वस्तुना आकार अने वस्तु जे सुन्दर होय ओ सचवावां जोईओ.' ___पण सौन्दर्यनी व्याख्या, ख्याल, देशे देशे व्यक्तिो व्यक्तिले जुदी होई शके ने !'
'हा. ओ भिन्नता तो रहेवानी ज, छतांय आधुनिको हवे उपयोगितानी साथे साथे प्राचीन वस्तुना सुन्दर आकार अने आकृतिओ अपनावे छे.'
मधुसूदनभाईने जूना दिवसोनी अकेओक सारी वात याद छे. कहे, 'ओ जमानानुं दाणादार घी जेनो दीवो बळे अने सुगन्ध आवे... केवू मङ्गल वातावरण रचाय ! माटीना वासणमां घीना तापे थती रसोईनी मीठाश हवे मात्र याद ज करवानी.'
जूनां मोतीकाम अने भरतकाम विशे एमणे पुस्तक लख्युं छे.
मधुसूदनभाईनी ज्ञानसाधनामां पुस्तकोना तो ढग खडकाय छे. कहे, 'बधां संघरुं तो तो घरमां चालवानी जग्या ज न रहे.'
पुस्तकोनो उपयोग थई जाय पछी अने संघरवानो लोभ नथी राखता. रुपियामां गणो तो जेनी किम्मत हजारो-लाखो रुपिया थाय ने ज्ञाननी दृष्टिले ते अलभ्य गणाय अवां मूल्यवान पुस्तको अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डियन