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________________ ओक्टोबर-२०१६ १९७ बहारगाम जाय त्यारे सूनमून थई जाय. बराबर चणे नहीं ने एमने आवेला जुए एटले थनगनवा मांडे. एवं ज छोडनुं थाय, अमुक संवेदनशील छोड एमनी गेरहाजरीमां चीमळावा मांडे. ए आवे ने छोड साथे वातो करे, प्रेमथी पंपाळे, पाणी पाय ने छोड ताजामाजा थई जाय. ___ परदेशी आबोहवाना छोडने एमणे एमना त्यां सफळतापूर्वक उछेर्या छे. परदेशी वेलोनां वनस्पतिशास्त्रना नामनी साथे आपणां भारतीय नामो सर्जी एमणे 'कुमार'मां लेखो लख्या छे. सो रूपियानो एमणे एक ओर्किडनो छोड खरीदेलो. तेना पर फूलो आव्यां, पण पुस्तकमां कह्या प्रमाणे सुगन्ध न हती. ए कहे, 'हुं तो छेतराई गयानी तीव्र लागणी साथे छोड सामे जोया करुं अने एने ठपको आपुं. त्यां अचानक सुगन्ध सुगन्ध प्रसरी गई. पत्नी कहे, कोईए अगरबत्ती सळगावी हशे. त्यां तो पाडोशीओ दोडी आव्या. पूछे, अरे, आ शानी सुगन्ध छ ? खातरी करी तो ए ओर्किडनी पुष्पवल्लरीनी ज सुगन्ध हती. छोडे मारी आरजू सांभळी हती.' 'अरे, हुं तो कहुं छु : पाषाणमां अने शिल्पोमांय चेतना होय छे, लागणी होय छे.' “एवो अनुभव खरो ?' ___'हा, इलोरानी वज्रयान बौद्ध गुफामां त्रीजे माळे उंडाणना भागमा एकलो गयो त्यारे सप्त तारानां दर्शने कोई जबरजस्त लागणी में अनुभवी हती. हुं एवो डरी गयो के त्यांथी भाग्यो, शिल्पो जाणे कंईक कहेतां हतां.' 'कोई भ्रमणा थई होय एवं कंईक ?' 'ना, ए भ्रमणा न हती.' 'तो भूतमां तमे मानो?' 'हा, भूत में जोयुं छे. बनारसमां रात्रे धाबा पर धुंधळी सफेद वराळ जेवी आकृति में सम्पूर्ण जागृतावस्थामां जोई हती. एक वार मारा पलंगमां सूतो हतो त्यारे प्रकाशित हाथ जोयो हतो. ___'पण ए अनुभव अने गुफानो पेलो अनुभव बे जुदा हता. स्वप्नमां कंईक बिहामणुं देखाय ने जे लागणी अनुभवीए ते पण जुदा प्रकारनी होय छे, अनुभवे ए भेद समजाय.'
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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