________________
१९६
अनुसन्धान- ७१
ए परमानन्दनो अनुभव करावे. भक्तो जेटलुं पामी शके एटलुं योगी के ज्ञानी पण न पामी शके.'
'अत्यारे रियाझ चाले छे ?'
'हा, केसेटो मूकुं ने साथे मारो रियाझ चाले. '
'अत्यारनुं खूब प्रचलित संगीत केंवुं लागे छे ?'
'ए घोंघाटियुं संगीत तो ज्ञानतन्तुने थकवी नाखे छे. बधुं तोडीफोडी नाखे छे. फिल्मी नृत्योमां पण अङ्ग अङ्गना कटका करी बीभत्स झाटका मारीने शरीर एवी रीते हलावे छे के पडदा पर जाणे देडकां, वन्दा अने कानखजूरा नाची रह्यां होय. खूब जुगुप्साप्रेरक लागे छे एवं. '
'वेस्टर्न म्युझिकमां शुं गमे ?'
'चर्च म्युझिक भाववाही छे. एकवार हुं केथेड्रलमां गयेलो. मा मेरीनी सामे एक माणस प्रार्थना करे. एना चहेरा पर अपार वेदना. एना माटे मने सहानुभूति थई आवी ने नजीकमां ऊभीने मा मेरीने जगदम्बा तरीके उद्देशीने में प्रार्थना करी. हुं प्रार्थनामय हतो ने मारी सामे देदीप्यमान तेजवर्तुलो देखावा मांड्यां. असीम आनन्दनो अनुभव थयो. कोई महाशक्तिनो, "अल्टिमेट रियालिटी" नो अहेसास थयो. हुं समाधिमां जई रह्यो हतो. '
'आ अनुभवनी तमारा पर शुं असर थई ?'
'हुं जैनधर्मी परिवारमां जन्म्यो धुं पण पहेलेथी सर्वधर्म समानतामां मानतो हतो. पण आ अनुभूति पछी तो पाकी खातरी थई के सर्व धर्म समान छे.'
'तमने योग अने समाधिमा रस खरो ?'
'ना. ए मार्गनुं मने आकर्षण नथी. मोक्षमां मने रस नथी. मारे मोक्ष नहीं जीवन शुं छे ए जाणवुं छे. जीवन जाणवा माटे जीवन जीववुं जोईए. हुं तो वारंवार माणसनो अवतार मागुं छं. '
मधुसूदनभाईए आखा ब्रह्माण्डने मन्दिरनुं रूप कल्पीने एक लेख लख्यो छे. एमने जेटलो माणसमां रस छे एटलो ज पशु, पंखी, प्राणी, वनस्पति, आजुबाजुनी सृष्टिमां रस छे. गायनुं वाछरडुं, बिलाडी, मोर, बजसगर, चकलीओ केटकेटलां एमनी साथे हळी गयां हतां. एमनी पाळेली बजसगरनी मादा ए