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________________ १९२ कलाविवेचक मधुसूदन ढांकी - अनुसन्धान- ७१ अवन्तिका गुणवन्त महेता मारा मनमां तर्कवितर्क चालता हता के वास्तु - इतिहासकार अने कलाविवेचक तरीके सन्मानपूर्वक जेमनुं नाम विश्वस्तरे चमके छे, पीएच. डी. ना विद्यार्थीओ पोताना शोधनिबन्धमां जेमना अभिप्रायो टांके छे, संशोधको जेमना मन्तव्यने आखरी निर्णय माने छे एवा असाधारण प्रतिभासम्पन्न मधुसूदनभाई ढांकी साथे मुलाकात केवी रहेशे ? सांभळ्युं हतुं के पोताना विशे वात करवानुं एमने पसंद नथी. छेल्लां पन्दरेक वर्षथी तो एमना संशोधनने लगता काम सिवाय बहार जता नथी. एमनी पळेपळ किंमती छे, गतिमान समयना अनन्त प्रवाहमां इतिहासक्षेत्रे पोतानां शाश्वत हस्ताक्षर अङ्कित करी जवाना पुरुषार्थमां तेओ रत छे. पण जोउं छं तो द्वार पर ए सस्मित वदने ऊभा छे. मारी साथे गुणवन्त हता तो रघुवंशनुं 'जगतः पितरौ पार्वतीपरमेश्वरौ' चरण बोलीने मङ्गलभावथी आवकार आप्यो. थयुं, नवेम्बरनी शीतल सवार, घटादार वृक्षो, अने खुल्ला आंगणाना लीधे वातावरण एटलुं प्रसन्नरम्य लागतुं हतुं के मधुसूदनभाईना ऋजु सौजन्यशील आभिजात्यपूर्ण व्यक्तित्वथी ? वात एमणे ज शरु करी. घूंटायेलो उष्माभर्यो स्वर. वातना विषय प्रमाणे सूर आरोह-अवरोह ले. कहे, 'हुं तो भूस्तरशास्त्र अने रसायणशास्त्र साथे बी.एस.सी. थयो ने बेक वर्ष बाद वतनना शहेर पोरबन्दर बेन्कमां जोडायो. पण डिमाण्ड ड्राफ्टो बनाववानुं काम नीरस लागे. पुरातत्त्व संशोधन मण्डळ स्थापी समय मळ्ये सभ्यो साथे आजुबाजुनां पुराणां मन्दिरोनां सर्वेक्षण माटे नीकळी पडु. माणस साथे संकळायेली सुन्दर चीजवस्तुमां पहेलेथी रस. 'कुमार' जेवा सुरुचिपूर्ण मासिकना वाचने ए रसने सम्मार्जित कर्यो हतो. स्थापत्यनो तलस्पर्शी अभ्यास करी गुजरातनी सोलङ्कीकाळनी स्थापत्यशैलीना उद्भवनी समस्या उकेलवा प्रयत्न आदर्यो. स्थापत्यनी प्रमाणबद्धता, समग्र रचनानो लयमेळ, सौन्दर्य अने सुशोभन, आसपासनां दृश्य साथेना संवादनी नानामां नानी विगत नोंधीने वडोदरा
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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