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अनुसन्धान- ७१
बौद्धोमां ज स्तूप होय एवी एक व्यापक समज के मान्यता प्रवर्ते छे.
पाठ
आ ग्रन्थ द्वारा प्रतिपादित प्रमाणित थाय छे के जैन स्तूप पण हता. आपणे त्यां प्रसिद्ध स्तोत्रपाठमां " मथुरायां सुपार्श्वश्रीः सुपार्श्वस्तूपरक्षिका" एवो पाठ आवे छे, तो जगचिन्तामणि स्तोत्रमां आवतो " महुरि पास ( सुपास ) " एवो आ बधां मथुरा - तीर्थनी प्राचीनतानां अने प्रभावकतानां प्रमाणो छे. विदुषी बहेन रेणुकाबेन पोरवाले खूब परिश्रमपूर्वक 'मथुरा 'नां शिल्पो विषे अध्ययन तथा संशोधन कर्तुं छे, अने तेना परिपाकरूपे आ ग्रन्थ तेणे सरज्यो छे. सात प्रकरणोमां वहेंचायेला अने अंग्रेजीमां आलेखायेला आ ग्रन्थना छेवाडे प्रमाणभूत तसवीरो पण आपेल छे.
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जाणवा मळे छे ते मुजब, आजे पण मथुराना टीलाओ के टींबाओमां जैन शिल्पावशेषोनी प्रचुर सामग्री खण्डित, जीर्ण तथा रखडती हालतमां पडी छे. कोईनुं ध्यान ते दिशामां जाय तो घणी सामग्रीनुं संरक्षण थई शके.
अध्यात्मकल्पद्रुम (सटीक ) : कर्ता - मुनिसुन्दरसूरिजी, टीकाकार - १ अधिरोहिणी धनविजयगणि, २. अध्यात्मकल्पलता रत्नचन्द्रगणि; पुन:सम्पादक - तत्त्वप्रभविजयजी, प्रका. - जिनभद्रसूरि ग्रन्थमाला - अमदावाद. पूर्वे देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार फंड तरफथी बन्ने टीकाओ साथै प्रकाशित ग्रन्थनुं हस्तप्रतोना आधारे पुनः सम्पादन - संशोधन साथै प्रकाशन.
मण्डलप्रकरणम् : (स्वोपज्ञवृत्ति, अनुवाद, पदार्थसङ्ग्रह सहित ), कर्ता - विनयकुशलगणि, पदार्थसङ्ग्रह कृपाबोधिविजयजी, प्रका. संघवी अंबालाल रतनचंद जैन धार्मिक ट्रस्ट.
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'पदार्थप्रकाश'नी श्रेणिना २५मा चरण तरीके, जैन ज्योतिष सम्बन्धित एक प्राचीन प्रकरणनुं विशद समजूती साथे प्रकाशन.
महावीरचरियं : कर्ता - नेमिचन्द्रसूरिजी पुनः सम्पादक न्यायरत्नविजयजी, प्रका. ॐ कारसूरि ज्ञानमन्दिर - सुरत.
मुनिश्री चतुरविजयजी द्वारा सम्पादित अने जैन आत्मानन्द सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित प्राकृत महाकाव्यनुं हस्तप्रतोना आधारे विषमपदटिप्पणी वगेरे सहित पुन:सम्पादन.