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ओक्टोबर-२०१६
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अनुसरीने ते चित्रो कराव्यां पण खरं. तेमनी जहेमत अने कलादृष्टि तथा चित्रकारनी मनभावन कलम - बन्ने आ पुस्तकमां जोई शकाय छे.
बीजा ग्रन्थमां जैन साधुओनी चर्या दर्शावतां सुरेख चित्रो जोवा मळे छे. साधुजीवननी प्रतिक्रमण, पडिलेहण, प्रवचन, ज्ञानार्जन, आहार, विहार इत्यादि विविध करणीओने चित्रकारे पोतानी कलम द्वारा व्यक्त करी छे. त्रणेक चित्रो साध्वीजीनी करणीने लगतां छे. ___ उपरांत, दिगम्बर, स्थानकवासी तथा तेरापंथी मुनिओनी चर्याने स्पर्शतां चित्रो पण आलेखावीने पोतानी उदार मनोवृत्तिनो ग्रन्थकारे परिचय कराव्यो छे. छेल्ले त्रणेक चित्रो कालधर्म तथा अन्तिम संस्कारने लगतां पण छे.
आ उत्तम अने संग्रहणीय चित्रो-ग्रन्थो, जैन संघनी कलादृष्टिनुं मूल्यवान नजराणुं बनी रहेशे तेमां सन्देह नथी.
The Jaina Stupa at Muthara: Art & Icons. By Dr. Renuka Porwal, प्रका.- प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म.प्र.), ई. २०१६, मूल्य : रू. ९००
मथुरा ए जैन संघर्नु एक पुरातन, प्रभावशाली अने ऐतिहासिक तीर्थ छे. त्यांना जिन-स्तूपो सङ्घना रक्षण माटे अत्यन्त उपयोगी हता. सदीओ-पुराणां ते स्थापत्यो कालक्रमे नष्ट-भ्रष्ट थतां गयां, जैन संघे तेनी भारोभार उपेक्षा सेवी, अने एक भव्य अने शास्त्रोक्त तीर्थ आपणे गुमावी बेठा. ___ मथुरा विषे इतिहासविदोए तथा पुरातत्त्ववेत्ताओए घणा लेखो अने पुस्तको लख्या छे. मथुराथी प्राप्त शिल्पो, प्रतिमाओ तथा विविध सामग्री, घणी बाबतोमां दस्तावेजी पुरावारूप बनी रहे तेवी छे. त्यांथी प्राप्त अभिलेखो पण मूल्यवान छे. आ सामग्रीनो बहु मोटो भाग काळना गर्तमां विलीन थई चुक्यो छे. तेमां अनेक कारणो हशे ज, तेमांनुं एक अने प्रमुख कारण जैनो द्वारा थयेली तेनी घोर उपेक्षा पण छे, ते नकारी नहि शकाय. तो पण, जे शेष सामग्री बची, तेमांनी पण जे सामग्री संग्रहालयो वगेरेमां सचवाई, तेना आधारे पण जैन इतिहासनी अगणित तूटती के खूटती कडीओ उपलब्ध थई छे, थई शके तेम छे.