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अनुसन्धान-७१
जहां तक श्रीकृष्ण की मृत्यु (लीलासंहरण) का प्रश्न है दोनो ही परम्पराए जराकुमार के बाण से उनकी मृत्यु का होना स्वीकार करती है किन्तु वैष्णव परम्परा के अनुसार वे नित्यमुक्त है और अपनी लीला का संहरण कर गोलोक में निवास करने लगते है । वहां जैन परम्परा के अनुसार वे अपनी मृत्यु के पश्चात् भविष्य में आगामी उत्सर्पिणी में भरतक्षेत्र में १२वें अमम नामक तीर्थङ्कर होकर मुक्ति को प्राप्त करेंगे - ऐसा उल्लेख है । इस प्रकार दोनों परम्पराए यद्यपि कृष्ण के जीवनवृत्त को अपने विवेचन का आधार बनाती है, फिर भी दोनों ने उसे अपने-अपने अनुसार मोडने का प्रयास किया है । जैसा कि हमने संकेत किया है कि श्रीकृष्ण के जीवन में ऐसी अनेक घटनाए है जिनका विवरण हमें जैन ग्रन्थों में ही मिलता है, पौराणिक साहित्य में नहीं मिलता है । श्रीकृष्ण के पद्मोत्तर से हुए युद्ध के वर्णन तथा गजसुकुमाल के जीवन की घटना, उनका नेमिनाथ के साथ सम्बन्ध आदि ऐसी घटनाए है जिनका उल्लेख हिन्दु परम्परा में या तो नहीं है या बहुत अल्प है । जबकि जैन परम्परा में ये विस्तार से चर्चित है । इस प्रकार कृष्ण के सम्बन्ध में जैन कथानकों का अपना वैशिष्ट्य है ।
प्राच्य विद्यापीठ, दुपाडा रोड,
शाजापुर (म.प्र.) * * *