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________________ १७८ अनुसन्धान-७१ आदेश एवं योगमाया शक्ति के द्वारा रोहिणी के गर्भ में संहरण है जब कि जैन परम्परा के किसी भी ग्रन्थ में इस संहरण की घटना का उल्लेख नहीं है। बल्कि यह पाया जाता है कि बलभद्र रोहिणी के गर्भ से सहज जन्म लेते है । यद्यपि यहां यह स्मरणीय तथ्य अवश्य है कि जैन परम्परा में जो महावीर के गर्भसंहरण की बात कही जाती है वह मूल में कहीं बलदेव के गर्भ-संहरण की घटना से प्रभावित तो नहीं है, जिसे जैनों ने अपने अनुरूप मोड लिया हो ? । बलभद्र को कृष्ण का सहोदर भाई न मानने के कारण जैन परम्परा में कृष्ण के सात भाईयों की संख्यापूर्ति के लिए गजसुकुमाल की कथा का विकास हुआ । श्रीकृष्ण के यशोदा के यहां स्थानान्तरण की बात दोनों परम्पराए समान रूप से स्वीकार करती है, किन्तु जहां श्रीमद् भागवत में यशोदा के गर्भ से जन्मी पुत्री को, जो कि विष्णु की योगमाया का ही स्वरूप थी, कंस पटक कर मार डालने का प्रयत्न करता है, किन्तु योगमाया होने के कारण वह मृत नहीं होती है तथा आकाश में चली जाती है और काली, दुर्गा आदि की शक्ति के रूप में पूजी जाती है । जैन परम्परा में वसुदेवहिण्डी और जिनसेन के उत्तरपुराण के कथनानुसार कंस उसे मारता नहीं है, अपितु नाक काटकर अथवा नाकचपटी करके छोड देता है । यही बालिका आगे साध्वी के रूप में दीक्षित हो जाती है और अपनी ध्यानसाधना के द्वारा देव-गति को प्राप्त करती है। किन्तु हरिवंश में जिनसेन (द्वितीय) ने यह उल्लेख किया है कि उसकी अङ्गुली के रक्त से सने हुए तीन टुकडे से वह त्रिशूलधारिणी काली के रूप में विन्ध्याचल (मिर्जापुर के समीप) में प्रतिष्ठित हो जाती है । जिनसेन ने इस देवी के सम्मुख होनेवाले भैंसों के वध की भी चर्चा की है जो विन्ध्याचल में आज तक प्रचलित है । इस प्रकार जिनसेन द्वितीय ने इस कथानक को हिन्दु परम्परा के साथ जोडा है। कृष्ण की बाललीलाओं के सम्बन्ध में दोनों परम्पराए लगभग समान मन्तव्य रखती है। यद्यपि श्रीमद् भागवत के अनुसार कंस के द्वारा भेजे गये
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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