SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओक्टोबर-२०१६ १७३ विवादास्पद हो, किन्तु इससे कृष्ण और उनके परिजनों का जैन परम्परा में क्या स्थान है, यह स्पष्ट हो जाता है । द्वारिका के विनाश एवं श्रीकृष्ण के भावी तीर्थङ्कर होने की भविष्यवाणी : प्रस्तुत अष्टम अंग आगम श्रीकृष्ण जीवनवृत्त के सम्बन्ध में कुछ नई सूचनाएं भी प्रदान करता है । इसमें द्वारिका के विनाश की कथा एक भिन्न ढंग से चित्रित की गई है । यद्यपि उस पर हिन्दु परम्परा का स्पष्ट प्रभाव भी देखा जा सकता है । अन्तकृत्दशा के अनुसार श्रीकृष्ण अरिष्टनेमि से द्वारिका के भविष्य के सन्दर्भ में प्रश्न पूछते है । अपने परिजनों को अरिष्टनेमि के पास दीक्षित होता देखकर उनके मन में एक आत्मग्लानि उत्पन्न होती है कि मैं इस राज्यलक्ष्मी का त्याग करके प्रभु के पास प्रव्रज्या ग्रहण करने में अपने को असमर्थ क्यों अनुभव कर रहा हूं तथा राज्य और अन्तःपुर में गृद्ध बना हुआ हूं । अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण के इस मनोभाव को जानकर कहते है कि हे कृष्ण सभी वासुदेव राजा निदान करके जन्म लेते है अतः उनके द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण करना सम्भव नहीं होता है । यहां कृष्ण अरिष्टनेमि से अपनी मृत्यु और भावी जीवन के सम्बन्ध में प्रश्न करते है । अरिष्टनेमि उन्हें बताते है कि यादवकुमार मद्यपान करके जब द्वैपायन ऋषि को क्रुद्ध करेंगे, तब द्वैपायनऋषि अग्निकुमार देव होकर इस द्वारिका का विनाश करेंगे । उस समय तुम अपने माता-पिता और स्वजनों के वियोग से दुःखी होकर बलराम के साथ दक्षिणी समुद्र तक तट की ओर पाण्डु-मथुरा की ओर प्रस्थान करोंगे । रास्ते में कौशाम्बवन उद्यान में तुम पीताम्बर ओढकर सोओगे । उस समय जराकुमार मृग के भ्रम में तुम पर तीर चलाएगा । उस तीर से विद्ध होकर तुम तीसरी पृथ्वी में उत्पन्न होओगे । वहां की आयु पूर्ण कर इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्ड्र जनपद की शतद्वारा नामक नगरी में अमम नाम के बारवें तीर्थङ्कर होओगे (द्रष्टव्य है कि समवायाङ्गसूत्र में भविष्यकालीन तीर्थङ्करों ने अमम का नाम १३वां बताया गया है ।)
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy