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________________ १७४ अनुसन्धान-७१ श्रीकृष्ण द्वारिका के विनाश और अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी सुनकर द्वारिका के निवासियों और अपने परिजनों को अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या लेने हेतु प्रोत्साहित करते है । परिणामस्वरूप कृष्ण की अनेक रानियां और पुत्र-परिजन प्रव्रज्या ग्रहण कर लेते है । कृष्ण के लघुभ्राता गजसुकुमाल की कथा : अन्तकृत्दशा में कृष्ण के सात भाईयों का उल्लेख हमें उपलब्ध होता है । जिनमें से अनियसेनकुमार आदि छ: का पालन-पोषण भद्दिलपुर नगर के नाग नामक गाथापति की पत्नी सुलसा द्वारा होता है । कथा के अनुसार देवकी को किसी भविष्यवेत्ताने एक सरीखे आठ पुत्रों को जन्म देने की भविष्यवाणी की थी । इस प्रकार सुलसा को भी मृतपुत्र होने की भविष्यवाणी की थी । सुलसा ने हरिणगमेषी नामक देव की आराधना की और वह देव प्रसन्न हुआ । कथाप्रसंग के अनुसार देवकी और सुलसा साथ-साथ गर्भवती होती है और साथ-साथ प्रसव भी करती थी । पुत्रप्रसव के समय वह देव सुलसा के मृत पुत्रों को देवकी के पास और देवकी के पुत्रों को सुलसा के पास रख देता था । इस प्रकार देवकी के प्रथम छ: पुत्र सुलसा के द्वारा पालित और पोषित हुए । कालांतर में सुलसा के ये छहो पुत्र अरिष्टनेमि के पास दीक्षित हो गये । संयोग से किसी समय वे छहो सहोदर भाई देवकी के गृह पर दो-दो के समूह में भिक्षार्थ आते है । उनके समरूप और समवयस्क होने के कारण देवकी को यह भ्रम हो जाता है कि वे ही मुनि बार-बार भिक्षा के लिए आ रहे है । निर्ग्रन्थ श्रमण किसी भी घर में भिक्षार्थ दूसरी बार प्रवेश नहीं करता है । अत: वह तीसरे समूह में आये मुनियों से अन्त में यह बात पूछ ही लेती है कि क्या द्वारिका नगरी में मुनियों को आहार उपलब्ध होने में कठिनाई हो रही है जिसके कारण आपको बार-बार मेरे द्वार पर आना पड रहा है । मुनि वस्तुस्थिति को स्पष्ट करते है कि हम छहो भाई एक सरीखे होने के कारण ही आपको ऐसा भ्रम हो गया है । देवकी को अपनी भविष्यवाणी का स्मरण होता है कि मुझे एक सरीखे आठ पुत्रों की
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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